4/28/2011

.मत पूछो ये मुझसे की कब याद आते हो..........

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मत पूछो ये मुझसे की कब याद आते हो,

जब-जब साँसे चलती है बहुत याद
आते हो |

नींद में पलकें होती हैं जब भी भरी,

बनके ख्वाब
बार-बार नज़र आते हो|

महफिल में शामिल होते हैं हम जब भी,

भीड़
की तन्हाइयों में हरबार नज़र आते हो|

जब भी सोचा की फासला रखूँ मैं
तुमसे,

ज़िन्दगी बनके साँसों में समां जाते हो|

खुद को तूफ़ान
बनाने की कोशिश तो की,

बनके साहिल अपनी आगोश में समा जाते हो|

चाह
ना था मैंने इस पहेली में उलझना,

हर उलझन का जबाव बनके उभर आते हो|

सूरज
की रौशनी, चंदा की चाँदनी,

आसमान को देखता हूँ मैं जब-जब,

तुम्हारी
कसम बहुत-बहुत याद आते हो|

अब ना पूछो मुझसे की कब-कब याद आते हो........

4/27/2011

अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं.......

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अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ.............

7/19/2010

हिचकियों से एक बात.....

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हिचकियों से एक बात का पता चलता है,

कि कोई हमे याद तो करता है,

बात न करे तो क्या हुआ,

कोई आज भी हम पर कुछ लम्हें बरबाद तो करता है

ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नहीं होती,


हर बात समझाने के लिए नहीं होती,

याद तो अक्सर आती है आप की,

लेकिन हर याद जताने के लिए नहीं होती

महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है,


मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,

कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नहीं मिलता,

वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है


कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है


प्यास भुजती नहीं बरसात गुज़र जाती है

अपनी यादों से कह दो कि यहाँ न आया करे

नींद आती नहीं और रात गुज़र जाती है

उमर की राह मे रस्ते बदल जाते हैं,


वक्त की आंधी में इन्सान बदल जाते हैं,

सोचते हैं तुम्हें इतना याद न करें,

लेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं

कभी कभी दिल उदास होता है


हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है

छलकती है मेरी भी आँखों से नमी

जब तुम्हारे दूर होने का एहसास होता है.....

7/17/2010

देखा है समंदर नम होते हुए...

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लोग किनारे की रेत पे

अपने दर्द छोड़ देते हैं

वो समेटता रहता है

अपनी लहरेँ फैला फैला कर

हमने कई बार देखा है

समंदर को नम होते हुए।

जब भी कोई उदास होकर

आ जाता है उसके करीब
वो अपनी लहरेँ खोल देता है

और खींच कर भीँच लेता है

अपने विशाल आगोश में


ताकि जज्ब कर सके आदमी
कभी जब मैं रोना चाहता था

पर आँसू पास नहीं होते थे

तो उसने आँखों को आँसू दिए थे

और घंटों तक   अपने किनारे का

कंधा दिया था
मैं चाहता था कि

खींच लाऊं समंदर को

अपने शहर तक
पर मैं जानता हूँ

महानगर में दर्द होते हैं...

देखा है समंदर नम होते हुए.....

7/16/2010

मेरी दोस्ती पे कभी शक ना करना........

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मुझे तो आदत है आपको याद करने की,



अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.......


ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है...


कभी दूर तो कभी क़रीब होते है


दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है


और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है .......


एक मुलाक़ात करो हमसे इनायत समझकर,


हर चीज़ का हिसाब देंगे क़यामत समझकर,

मेरी दोस्ती पे कभी शक ना करना,


हम दोस्ती भी करते है इबादत समझकर....

खुद अपनी पहचान से अनजान हूँ मैं.....


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खुद अपनी पहचान से अनजान हूँ मैं

अपने बारे में तुझे कुछ बताऊँ कैसे .....??



बहुत सिमटी हुई छोटी सी दुनिया है मेरी

इस दिल की गहराईओं में आपको ले जाऊं कैसे ......??



आसमान की ऊँचाइयों तक मेरे ख्वाब बिखरे हैं ,

अपने अरमानों ही हद मैं दिखाऊँ कैसे ....???



मुस्कराना मेरी अब आदत है, आंसुओं को छुपा कर ,

पर हर गम को अपनी हंसी से बहलाऊँ कैसे..... ?



होकर मेरी सरहदों में शामिल, आप ही जान लो मुझे,

किसी और तरह आपको अपने दिल से मिलवाऊँ कैसे....

6/07/2010

5/25/2010

झारखंड में अब कांग्रेस की पैतरेबाजी....


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झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता को भापते हुए कांग्रेस अब अपनी बाजी खेलने जा रही है। बीजेपी की बाजी को पलटता देख कांग्रेस ने अपनी पैतरेबाजी तेज कर दी है , लेकिन वो बीजेपी की तरह खुलकर शिबू सोरेन सरकार के पक्ष में खड़ा नहीं होने चाहती है। कांग्रेस की इस पैतरेबाजी की मुहिम में वो शिबू सोरेन को बचा हुआ एक महीने का कार्यकाल देकर राज्य में सत्ता की कमान अपने हाथ लेना चाहती है। वो इस काम में मोहरा झारखंड विकास मोर्चा के अक्ष्यक्ष बाबूलाल मंराडी को बनाना चाहती है। कांग्रेस ये चाह रही है कि शिबू सोरेन को एक महीने का कार्यकाल बचा है यानि एक माह बाद सोरेन को चुनाव का सामना करना पड़ेगा, तब तक सोरेन की सरकार को बचा कर सत्ता परिवर्तन करा कर बाबू लाल मंराडी को सीएम बनाकर सत्ता की चाभी खुद अपने पास रखना चाहती है। पिछले वर्षो में झारखंड की राजनीति में अपना हाथ जला चुकी कांग्रेस ने इस बार अपनी रणनीति थोड़ी बदल दी है। जहां सरकार गठन के लिए आगे बढ़कर बीजेपी वाली गलती नहीं दोहराना चाहती है, वहीं जल्दबाजी में राष्ट्रपति शासन की ओर भी राज्य को बढ़ाने से बचना चाहती है। नई रणनीति के तहत सोरेन को बाकी बचा एक महीने का कार्यकाल पूरा करने दिया जाएगा। यानि कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा 31 मई को शिबू सोरेन सरकार को बचाने का प्रयास करेगी और अगले माह खुद सत्ता पर काबिज़ होने का ख्वाब देख रही है। झामुमो के असंतुष्ट विधायकों को यह कहने का अवसर नहीं होगा कि गुरुजी को हटाया गया। उसके बाद संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार विधायक न बन पाए गुरुजी को हटना ही होगा। माना जा रहा है कि उसके बाद मरांडी को आगे कर कांग्रेस सरकार गठन की कोशिश में जुटेगी। इस नई रणनीति के पीछे मरांडी की कोशिश है। दरअसल, सोरेन को समझाया गया था कि बीजेपी की सरकार न बनने दें। जरूरत पड़ी तो कांग्रेस और झाविमो उन्हें बचा लेगा। उसके बाद ही सोरेन ने पलटी मारते हुए घोषणा की थी कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। लेकिन क्या गुरु जी इतनी आसानी से सत्ता की चाभी कांग्रेस के हाथों में दे सकते है जिस तरह से कांग्रेस सोच रही है...गुरु जी ने जिस तरह से पिछले 26 दिनों तक अपने ढंग से बीजेपी को नचाया क्या वो कांग्रेस के लिए कोई और मुसिबत खड़ीं नहीं कर सकते है......आखिर जो भी झारखंड में हो रहा है ये तो जनता और लोकतंत्र के लिए एक छलावा ही कहा जा सकता है..

5/10/2010

जीतने नहीं हारने के लिए खेले....

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कहा जाता है कि अगर आप में जीत का जजबा हो तो जीत आप की होकर ही रहती है.....लेकिन जब हम हार के इरादे से मैदान में जायेगे तो हमारा हारना बिल्कुल तय है....कुछ इसी इरादे के साथ हमारी टीम इंडिया टी-20 विश्व कप में हिस्सा लेने वेस्टइंडीज गई थी.....यह सुनकर कितना हास्यास्पद लगता है कि हमारी टीम इंडिया टी-20 विश्व कप में हिस्सा लेने बिना किसी तैयारी के पहुंच गयी थी। टीम इंडिया के सभी खिलाड़ी पिछले डेढ महीने से आईपीएल के थकाऊ सत्र के बाद सीधे वेस्टइडीज जा पहुचे....जिसका परिणाम यही रहा कि भारतीय टीम लीग मैचों को बाद किसी तरह से सुपर-8 में तो पहुचने में कामयाब रही...लोकिन वो सुपर-8 में एक मैच के बाद सारे मैच हार कर सेमीफाइनल के दौर से बाहर जा पहुंची। पहले टी-20 विश्व कप का सरताज रही टींम इंडिया इस बार सेमीफाइनल तक नहीं पहुच सकी.....जिसकी वजह आईपीएल में खेलने के कारण खिलाडियों की थकान और इंजरी को माना जा रहा है....टीम इंडिया 2007 पहला टी-20 विश्व कप जब जीता था तो आईपीएल का संस्करण की शुरुआत भारत में नहीं हुई थी......और भारतीय खिलाड़ी जीत के इरादे से टी-20 फारमेंट विश्व कप को खेलने पहुचे थे..... लेकिन आईपीएल के शुरु होने क बाद टी-20 फांरमेट में खेलने से खिलाड़ियों में और अनुभव होना चाहिए.... लेकिन आईपीएल में खिलाड़ियों को ज्यादा खेल की वजह से थकान और इंजरी होना वाजिब है। गौरतलब है कि बीसीआईसीआई ही खेल के सारे कार्यक्रमों को बनाता है तो इस बात का उन्हें ख्याल रखना चाहिए की खिलाड़ियों को आराम करने का समय मिल सके.....धोनी, ज़हीर जैसे खिलाड़ी अपनी इंजरी को छिपाते हुए विश्व कप में खेलने जा पहुंचे है.....विश्व के सबसे धनी बोर्डो में बीसीआईसीआई को इस तरह से वयस्त कार्यकर्मो को खिलाड़ियों पर नहीं थोपने चाहिए...सिर्फ कमाई के लिए मैच खेलने की नीति को बदलना पड़ेगा.....खिलाड़ियों की थकान या इंजरी की बात करे तो इस का उदाहरण टीम इंडिया की आगामी जिम्बाम्बे दौरे की घोषित टीम से मिल सकता है....जिसमें खुद कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने आराम करने की इच्छा जताई है...साथ ही सचिन ने भी दौरे पर जाने से इंकार किया...तो बीसीआईसीआई ने सुरेश रैना को टीम की कमान थमा दी......वही टी-20 विश्व कप में अब थकी हारी भारतीय टीम को एक चमत्कार की उम्मीद है कि श्रीलंका को बड़े अन्तर से हराये और साथ ही साथ ये दुआ करनी होगी कि आस्ट्रेलिया वेस्टइडीज को हरा दे तभी टीम इंडिया को सेमीफाइनल में खेलने का मौका मिल सकता है......जो कि सिर्फ एक सपना ही लग रहा है टीम इंडिया के लिए...... लेकिन हम अपनी टीम की कमजोरियों को पहचाने और उसे हल करने को कोशिश करे तो बेहतर रहेगा.... कब तक हम भाग्य भरोसे जीतने और लाज बचाने की कोशिश करगे......आईपीएल में कमाई को छोड़कर बीसीआईसीआई और खिलाडियों को देश के लिए होने वालो मैचों में अपने परफारमेंस पर ध्यान देना होगा.....नहीं तो जीत सिर्फ हमारी टीम के लिए एक सपना रह जायेगा....





5/05/2010

अब कसाब भी फांसी के इंतजार में


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26/11 के मुम्बई हमले में एक मात्र जिन्दा पकड़े गये पाक आंतकी अजमल आमिर कसाब को गुरुवार को विशेष अदालत ने मौत की सजा दी। तीन दिन पहले कसाब को सामूहिक हत्या और देश के खिलाफ जंग छेड़ने का दोषी ठहराया गया था। आतंकवाद निरोधी विशेष अदालत के न्यायाधीश एमएल तहलयानी ने 22 वर्षीय कसाब को मौत की सजा सुनाई। हमलों के एकमात्र जिंदा आरोपी कसाब का मुकदमा लगभग एक साल चला। कसाब को देश के खिलाफ जंग छेड़ने, हत्या, आपराधिक साजिश और आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने समेत पांच आरोपों के तहत फांसी की सजा सुनाई गई। कसाब का यह मामला अपनी तरह के विरले मामलों में आता है, जिसके लिए उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए। अजमल आमिर कसाब की कानूनी नियति को लेकर देश में किसी को संदेह नहीं था। देश पर सबसे बड़े और प्रत्यक्ष आतंकी हमले में 166 लोग मारे गए और उनके द्वारा कब्जा किए गए भवन को मुक्त कराने में हमारी सुरक्षा एजेंसियों को पूरे तीन दिन लगे.... ऐसे में सीधे मोर्चा लेते पुलिस के हाथ लगे आतंकी के साथ न्याय प्रणाली किसी प्रकार की रियायत बरतेगी इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। जिस व्यक्ति पर राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का आरोप हो और जो सरेआम भयानक आतंक फैलाते, खून के छींटे उड़ाते, हत्याएं करते, विध्वंस मचाते हुए घटनास्थल पर पकड़ा गया हो, उसे किसी न्यायालय से रहम मिल भी नहीं सकती....... उस पर हत्या से लेकर, आपराधिक षड्यंत्र, गैरकानूनी गतिविधिया आदि कानूनों के अंतर्गत जितने आरोप लगाए गए थे उनमें ज्यादातर में उसे दोषी सिद्ध होना ही था.....वही स्वयं कसाब भी यह मान चुका था कि उसका अपराध सिद्ध हो चुका है। वास्तव में कसाब एवं हमले के पाकिस्तानी सूत्रधारों के संबंध में पुलिस ने अपने आरोप पत्र में जितने सबूत पेश किए थे, न्यायालय ने उनमें से ज्यादातर को स्वीकार कर लिया है। इसे मुंबई पुलिस सहित जाच में लगी अन्य सुरक्षा एजेंसिया यकीनन आत्मतुष्ट हो सकती हैं। लेकिन इन सब के बाद अब सवाल ये उठता है कि कसाब को दी गयी सजा पर अमल कब होता है। हमारे देश की अदालत द्दारा दिये गये 56 अपराधी अभी भी अपनी मौत के इंतजार में कतार में खड़े है। यानि कसाब भी अब उन्ही की कतार नें खड़ा हो गया है....इन सब में एक नाम में एक नाम ऐसा भी है जो हमारी लोक तंत्र के मन्दिर कहे जाने वाले संसद पर हमले के अपराधी अफजल गुरु है....जिसके फांसी की सजा को लेकर राजनीति खेली जा रही है......खैर कसाब को आगे के अदालतों में अपील करने के अभी काफी मौके है...... कसाब अभी अपनी सजा को कम करवाने के लिए अदालत के कई दरवाजे खटखटा सकता है.....लेकिन इतना तो तय है कि वो भी फांसी की सजा पाने वालों का कतार में आ खड़ा हुआ है... अदालत, पुलिस और जांच ऐजेंसियों ने तो अपने काम को बखुबी अंजाम दे दिया है....लेकिन कही इस मामले मे भी संसद हमले की ही तरह राजनीति ना शुरु हो जाय...

4/27/2010

फोन टैप हो रहा है भाई.......

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पिछले हफ्ते हमारी संसद में आईपीएल का मैच खेला जा रहा था......जिसके कारण सदन की कार्यवाही में बार-बार ब्रेक लिया जा रहा था.....जी हम बात कर रहे है संसद में आईपीएल मुद्दे को लेकर उस गहमागहमी की जिस के कारण सदन के काम को विपक्ष द्दारा बार-बार गतिरोध पैदा किया गया.....इस मैच में कहे तो विपक्ष हॉवी रहा और सरकार को अपनी हार माननी पड़ी.... और अपने एक सिपहसलाहकार को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा....जी हॉ सरकार ने शशि थरुर की अपने मंत्री मंडल से विदाई करनी पड़ी..... विपक्ष की इस जीत के बाद सदन की कार्यवाही ठीक से चलने के आसार बन गये थे.... लेकिन विपक्ष के पास एक और मुद्दा हाथ लग गय..... एक पत्रिका ने दावा किया की यूपीए सरकार की तरफ से कुछ राजनेताओं के फोन पिछले कुछ सालों में किये गये.... अब क्या था विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरना का एक सुनहरा मौका हाथ लग गया.... विपक्ष फोन टैपिंग को लेकर सदन में बार-बार हंगामें खड़े कर रही है.... और इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सदन में स्पष्टीकरण की मॉग कर रहा है.......लेकिन प्रधानमंत्री ने सदन से बाहर इस मसले पर बयान देना मुनासिफ समझा......जिसे लेकर विपक्ष ने प्रधानमंत्री पर सदन की अवमानना का आरोप लगा दिया.......विपक्ष का ये कहना है कि सदन की कार्यवाही चलते समय प्रधानमंत्री ने सदन की गरिमा को अपमानित किया है...उन्हें सदन में अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए था, लेकिन वो ऐसा ना कर के सदन को अपमानित किया। फोन टैपिंग मामले को लेकर सदन की कार्यवाही पिछले तीन दिनों से नहीं चल रही है......इसी बीच सरकार के खिलाफ कटौती प्रस्ताव को लेकर सदन में काफी गहमागहमी रही...लेकिन सरकार को बीएसपी का ममर्थन मिलने के कारण सरकार को इस में जीत तो मिल गयी। वही केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कुछ नेताओं के फोन टैप किए जा रहे हैं। यह बात दीगर है कि उन्होंने इसकी जाच की भी बात कही है। उनका बयान है कि अगर जाच में ऐसा कुछ सामने आया तो कार्रवाई होगी। सवाल है कि अगर फोन टैप हुआ ही नहीं तो फिर जाच करने की जरूरत क्या है? इसका उत्तर सरकार के पास नहीं है। फोन टैपिंग के बारे में गृहमंत्री से ज्यादा अधिकृत वक्तव्य और किसी का नहीं हो सकता है। आखिर किसी का फोन टैप करने के लिए पुलिस और जाच एजेंसियों को गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है। इसलिए किसका फोन टैप हो रहा है, इसकी जानकारी गृहमंत्री के पास होनी चाहिए.... कहा जा सकता है कि चूंकि यह एक बड़ा मुद्दा बन चुका है.....इसलिए सरकार अपनी स्थिति साफ करने के लिए जाच करा रही है..... संभवत: यह राजनीतिक हमलों की धार कुंद करने की रणनीति हो, लेकिन यह विचार करने की जरूरत है कि क्या कृषि मंत्री शरद पवार के साथ काग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, माकपा महासचिव प्रकाश करात सहित कुछ नेताओ के फोन टैप किए जाने के आरोपों पर विश्वास करने का पर्याप्त आधार मौजूद है? .....सरकार द्वारा नेताओं और विरोधियो की फोन टैपिंग को लेकर हमारे देश में पहले भी हंगामे हुए हैं। राजीव गाधी के प्रधानमंत्रीत्व काल में यह मामला काफी गरमाया था। पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आरोप लगाया था कि उनका फोन टैप किया जा रहा है और उसके बाद अरुण नेहरू ने। यह बात अलग है कि सरकार में आने के बाद ये नेता इस आरोप को भूल गए..... अग हम बात कर फोन टैपिंग की तो आज फोन टैप करना आसान है.... बस एक जीएसएम डिवायस की आवश्यकता है....लेकिन इस के लिए गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है.... एनडीए सरकार के कार्यकाल में आतंकियों का ध्यान रखते हुए नेशनल टेक्नोलाजी रिसर्च आर्गनाइजेशन की स्थापना हुई और सरकार के स्तर पर फोन टैपिंग की शीर्ष तकनीकी इकाई यही है। वही इस मामले में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में आपातकाल की 20वीं वर्षगांठ 25 जून 1975 को अटल बिहारी वाजपेयी के एक वक्तव्य का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने इसी सदन में उनका, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सहित कुछ नेताओ और पत्रकारों के फोन टैप किए जाने का आरोप लगाते हुए आपातकाल की याद को दोहराया.....लेकिन वाजपेयी खुद प्रधानमंत्री हुए और आडवाणी गृह मंत्री....तो आखिर दोनों चाहते तो फोन टैप से संबंधित आरोपों का सच सामने रख सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया...लेकिन इस बार जिन लोगों के फोन टैपिंग की बात सामने आ रही है उनसे सरकार को कोई खास खतरा नहीं दिखता फिर इस तरह की बातों की सच्चाई पर थोड़ा शक जरुर खड़ा हो रहा है..... आखिर जो भी हो इस मामले पर सरकार और विपक्ष को सोचने की जरुर है कि इस तरह के मामले की पुनरावृत्ति दुबारा ना हो....और जिस तरह से सदन पर इस मामले को लेकर हंगामा मच रहा है ये लोकतंत्र की गरिमा के लिए कहा तक जायज़ ठहराया जा सकता है....... हम तो यही कहेगें कि फोन टैप हो रहा है भाई......ज़रा सम्भल कर बात करो.......

4/25/2010

आईपीएल में होगा दूसरा फ़ाइनल.....!

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रविवार की रात को आईपीएल-3 के फ़ाइनल के रोमांच में चेन्नई सुपरकिंग्स ने मुम्बई इंडियंस पर जीत हासिल की.....अभी इस जीत का जश्न ही चल रहा था कि बीसीसीआई ने आईपीएल के आयुक्त ललित मादी के बर्खास्तगी का ऐलान कर दिया....लेकिन इस फैसले में कुछ ऐसा नहीं था कि लोगों को हैरानी हो क्योकि इस बात की चर्चा पहले से ही गर्म थी की ललित मोदी की आईपीएस से विदाई होनी ही है.....लोकिन आईपीएल के फ़ाइनल मैच के बाद ही ये फैसला आयेगा इसकी उम्मीद कम की जा रही थी....शरद पवार की बातों से लग रहा था कि मोदी के साथ किसी समझौते की उम्मीद लग रही थी......लेकिन जो भी हुआ क्रिकेट के लिए अच्छा ही हुआ.......ये हम नहीं बीसीसीआई के बयानों से लग रहा है........बीसीसीआई ये मान रही है कि ललित मोदी क्रिकेट को बदनाम कर रहे थे......वही मोदी इन बातों से परे कुछ नामों के खुलासे की बात कर रहे जो इस खेल को बदनाम करने की साज़िश रच रहे है...... बीसीसीआई मोदी को इस लोकप्रिय क्रिकेट टूर्नामेंट में वित्तीय अनियमितताओं को लेकर पिछले दो सप्ताह से चले आ रहे विवाद को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.....जिसके लिए ललित मोदी को 15 दिनों की मोहलत दी गयी है। बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर ने कहा कि मोदी की व्यक्तिगत दुराचार की कथित कारगुजारियों ने क्रिकेट प्रशासन और इस खेल का नाम बदनाम किया.....वही शशांक मनोहर ने मीडिया विज्ञप्ति में कहा कि के तहत मुझे जो अधिकार हासिल है, मैंने उनका उपयोग करके मिस्टर ललित मोदी को बोर्ड, आईपीएल, कार्यकारी समिति और भारतीय क्रिकेट बोर्ड की अन्य किसी भी समिति के कामकाज में भाग लेने से निलंबित कर दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से कई अप्रिय और दुर्भाग्यपूर्ण चीजें उभर कर सामने आई हैं....वही ललित मोदी का ये कहना कि बीसीसीआई सच्चाई से मुंह छिपाने की कोशिश कर रही है....यानि इस मामले कहीं ना कहीं वो राज छिपा है जो जनता जानना चाहती है........वही ललित मोदी के पिछले बयानों पर गैर करे तो वो कुछ नामों के खुलासे की बात कर रहे है....... अब आईपीएल के इस खेल में फ़ाइन होने के बाद दूसरे फ़ाइनल की तैयारी शुरु हो चुकी है.....जो ललित मोदी बनाम बीसीसीआई में होने वाला है और इस मैच में अम्पायर की भूमिका सरकार निभाने जा रही है.....जिसमें खासकर शरद पवार की भूमिका काफी देखई जा रही है...........अब तो ये मैच आईपीएल के फ़ाइनल से ज्यादा रोमांचकारी होगा ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.....

4/24/2010

अब ललित मोदी विकेट गिराने की तैयारी में......

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कहते है कि क्रिकेट का खेल महान अनिश्चताओं से भरा होता है.....क्रिकेट के हर एक गेंद पर एक नया रोमांच होता है यही कारण है कि क्रिकेट पूरे विश्व में पसंद किये जाने वाले खेल बन गया है..... इंडिया में इस खेल का रोमांच लोगों कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है......इस खेल में जब से टी-20 का संस्करण आया है इसका क्रेज कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है.....लोगों में फिल्मी एपीसोड की तरह 3 घंटे का रोमांच परवान चढ़ कर बोल रहा है......आईपीएल के पिछले दो संस्करण में काफी शोहरत बटोर चुका है.....उसी तर्ज पर आईपीएल-3 भी लोगों में परवान चढ़ रहा ही था कि इस खेल से जुड़े पहलुओं में कुछ खामियां नज़र आनी शुरु हो गयी....इस कड़ी में सरकार से लेकर क्रिकेट से जुड़े पदाधिकारियों द्दारा इस खेल को बदनाम करने की साजिश की गयी जो लोगों के सामने एक-एक करके सामने आती रही.....जिसमें केन्द्र सरकार के एक राज्य मंत्री जिन्हें उनके बड़बोलेपन के कारण जाना जाता है....जी हां हम बाज कर रहे है शशि थरुर की जिन्हें आईपीएल विवाद के कारण अपने मंत्री पद से ही हाथ धोना पड़ा.....इससे पहले भी वो सरकार के लिए सिर दर्द बने हुये थे.......लेकिन आईपीएल के कारण सरकार ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना मुनासिफ समझा। आईपीएल घोटालों का खेल बन चुका है जिसमें रोज एक नयी कड़ी जुड़ी नज़र आ रही है.......इस खेल में फायदा पहुचाने को लेकर एनसीपी के कई नेताओं के नाम सामने आये है....और वो अपने आप को पाकसाफ बताने की कोशिश कर रहे है......और इस में बीसीसीआई की भूमिका भी कुछ साफ नहीं दिख रही है वो आईपीएल के विरोध पर उतारु हो चुकी है और इस खेल में वो ललित मोदी को बलि का बकरा बनाने की फिराक में लग चुकी है.....बीसीसीआई और आईपीएल आयुक्त ललित मोदी के बीच 'खेल' का रोमांच शनिवार को इतना बढ़ गया कि इसके सामने रविवार को होने वाले आईपीएल-3 के फाइनल मैच का रोमांच फीका पड़ता लगा रहा है......बीसीसीआई के दिग्गजों ने बैठक कर मोदी को पद से हटाने की नीति बनाई, तो मोदी ने उन लोगों को बेनकाब करने की धमकी दे डाली, जिन्होंने 'क्रिकेट को बदनाम करने' की कोशिश की......वही मोदी ने साफ कहा कि बीसीसीआई उन्हें बर्खास्त करे, वह इस्तीफा नहीं देंगे.......मोदी ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखा, 'मुझ पर इस्तीफे के लिए दबाव डाला जा रहा है.....पर मैं आपको बता दूं कि ऐसा होने वाला नहीं है। उन्हें मुझे बर्खास्त करने दीजिए.....साथ ही मोदी ने अपने अगले पैंतरे का संकेत देते हुए लिखा, आईपीएल खत्म होने का इंतजार करिए। इसके बाद मैं बताऊंगा कि कौन लोग क्रिकेट को बदनाम करने की कोशिश कर रहे थे और हमने कैसे उन्हें रोका....वही बीसीसीआई ने मोदी की आईपीएल से बर्खास्तिगी का मना बना लिया है.....मोदी को बीसीसीआई ने 26 अप्रैल तक सा समय दिया है....यानि आईपीएल के समाप्त होने के बाद आईपीएल को लेकर देश में एक नया रोंमाच देखने को मिल सकता जिसमें बहुत से चेहरें से नकाब हट सकता है जो अब तक इस खेल की आड़ में बड़ी कमाई कर चुके है या इस खेल में अपने रसुख के बल पर लोगों को फायदा पहुचाने की कोशिश कर चुके है.......मोदी के सवाल पर उलझी बीसीसीआई ने एनसीपी चीफ शरद पवार की भी परेशानी बढ़ा दी है.....वही ललित मोदी के बचाव में विजय माल्या, शिल्पा शेट्टी, शाहरुख खान, जय मेहता जैसे कुछ फ्रेंचाइजी मालिकों ने शनिवार को खुल कर सामने आये....दूसरी तरफ बीसीसीआई में पूरी तरह मोदी के खिलाफ माहौल है....वही ललित मोदी का बयान लोगों को बेनकाब करने का इस खेल में सबसे ज्यादा खलबली मचा दी है...अब देखना ये होगा कि इस खेल में कौन-कौन आउट होता है और कौन नॉटआउट....ये तो वक्त आने पर साफ होगा...

4/11/2010

अब दलितों के मसीहा के सहारे कांग्रेस.....


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कांग्रेस के महासचिव और युवा के सरोकार बनने वाले राहुल गांधी कभी दलितों के सहारे यूपी की रीजनीति में कांग्रेस की नैया पार सगाने को भरपूर कोशिश में लगे है। कांग्रेस के कथित युवराज राहुल को दलितों के घर जा कर ठहरने और खाने की कहानी तो हम देख ही चुके है....... लेकिन इस कथित दलित प्रेम को राहुल विधान सभा चुनाव के साथ साथ लोक सभा के चुनाव में भुना नहीं सके थे....... कभी कांग्रेस का कथित मुस्लिम प्रेम कम होने या कहे कि मुस्लिम वोट बैंक में कांग्रेस की पैठ कम हो चुकी है.... तो राहुल ने दलित लोगों की सुध लेने का मन बना लिया.....आखिर वो ऐसा करे ना क्यों.... इसी दलित वोट बैंक के सहारे ही तो मायावती यूपी की राजनीति में काबिज हुई है....शायद राहुल को भी इसी के सहारे यूपी में अपनी पार्टी को खोई हुई वो हैसियत को पानी की कोशिश में लग चुके है...अब राहुल गांधी को दलित लोगों के साथ-साथ दलितों के मसीहा कहे जाने वाले भीम राव अंबेडकर का भई सहारा लेने की कोशिश कर रहे है.... राहुल गांधी अब अंबेडकर की जंयती 14 अप्रैल को पूरे यूपी में यात्रांए शुरु करने जा रहे है.....राहुल की इस पहल में कहीं ना कहीं दलितों को अपनी पार्टी को आकर्षित करने का दिखावा मात्र ही लगता है। राहुल गांधी इससे पहले दलित के घर जाकर उनके घर का खाना खाकर वो सहानुभूति लेने की पूरी कोशिश कर चुके है.......लेकिन अब वो अंबेडकर जयंती के सहारे पूर प्रदेश की यात्रा कर अंबेडकर के सहारा लेकर दलित वोट बैंक को हथियाने की मुहिम में लगने जा रहे है......राहुल की ये मुहिम कितनी कामयाब होती है ये तो आने वाले वक्त की बात है...... लेकिन मायावती को इस यात्रा की भनक लगते ही वो इस यात्रा की काट निकालने की तैयारी में भी जुट चुकी है..... कांग्रेस के इस अभियान की काट के लिए राज्य में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी ने इसी दिन एक वृहद् कार्यक्रम करने का फैसला किया है। शाम 5 बजे होने वाले कार्यक्रम के लिए बसपा ने एक लाख से ज्यादा लोगों को जुटाने की तैयारी की है। ऐसे में कांग्रेस की प्रदेश इकाई को आशंका है कि कहीं बसपा के कार्यक्रम के सामने राहुल गांधी का शो फीका न पड़ जाए। अब ये देखना है कि इस दलित प्रेम के सहारे राजनीति करने वाले राहुल गांधी और मायावती में किस का पलड़ा भारी रहता है ये ते वक्त ही बता सकता है....

3/30/2010

.........अब आमसहमति


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जिस तरह से राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल को लेकर हंगामा मचा और सदन की गरिमा के साथ मज़ाक उड़ाया गया....उसको फिर लोक सभी में दोहराया ना जाय इस को लेकर सरकार सदन के बाहर ही होम वर्क कर लेना चाहती है। महिला आरक्षण बिल को लेकर सरकार लोक सभा में पास करवाने के लिए अपना मन बना चुकी है....लेकिन वो इस बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है.....सरकार नहीं चाहती है कि लोक सभा में भी वो हंगामा हो जो राज्य सभा में हो चुका है.... वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने महिला आरक्षण विधेयक पर मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद और शरद यादव के कड़े विरोध की पृष्ठभूमि में यह बैठक बुलाई है। मुखर्जी लोकसभा में सदन के नेता भी हैं। सरकार इस महिला आरक्षण बिल को लेकर आम सहमति के लिए 5 अप्रैल को सभी दलों की बैठक बुलाई है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक को राज्य सभा की मंजूरी मिल चुकी है। मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी भी इस विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध कर रही है। वही कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली का कहा है कि सरकार संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में महिला आरक्षण विधेयक को उसके वर्तमान स्वरूप में ही पारित कराने के लिए लोकसभा में रखने जा रही है। यानि सरकार इस बिल में किसी संशोधन के साथ लोक सभा में नहीं रखना चाहती है तो फिर आम सहमति के नाम पर इस बैठक का मकसद क्या रह जाता है....... लोकसभा का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू हो रहा है। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान करने वाले इस विधेयक में कई दल आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था करने की मांग कर रहे हैं। राजद, सपा और बसपा आदि का कहना है कि इसमें अन्य पिछड़े वर्गो और अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए कोटा तय होना चाहिए। वही सपा नेता मुलायम सिंह ने विधेयक के विरोध में कुछ विवादास्पद टिप्पणियां कर इस मुद्दे पर अपने कड़े रुख का इज़हार पहले की कर दिया है.... उन्होंने कहा कि इस विधेयक के पारित होने के 10 साल बाद एक भी पुरूष लोकसभा के लिए चुना नहीं जा सकेगा और सदन में ऐसी महिलाएं आएंगी, जिन्हें देख कर लोग सीटी बजाया करेंगे......इस टिप्पणी के बाद महिला आरक्षण बिल को लेकर महिला के ह़क की बात करने वाले इन लोगोंकी सोच और करनी में साफ फर्क नज़र आने लगा है...... महिला आरक्षण बिल के मौजूदा स्परुप को लेकर मायावती के नेतृत्व वाली बसपा और लालू प्रसाद की राजद विधेयक के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन चाहती हैं। वही शरद यादव के नेतृत्व वाले जदयू का एक वर्ग भी ऐसा ही चाहता है और तो और केंद्रीय मंत्री ममता बनर्जी भी इस महिला आरक्षण को लेकर वही राय रखती है जो इस बिल के घोर विरोधी लालू, मुलायम और शरद के साथ अपने सुर से सुर मिलाती नज़र आ रही है..... दूसरी तरफ राज्यसभा में बीजेपी ने जिस तरह से विधेयक के समर्थन में खड़ी दिखी थी लेकिन अब बीजेपी में भी इस बिल को लेकर कुछ लोग विधेयक में बदलाव की पहल करते दिख रहे है......वही 15 अप्रैल से दुबारा सदन की कार्यवाही शुरु हो रही है और सरकार इस बिल को लेकर आमसहमति के साथ-साथ अपने अड़ियल रवैये दोनों दिखा रही है..... और साथ ही इस बिल को लेकर विरोधियों के खेमें में भी तादात बढती जा रही है.....जो पार्टियां राज्य सभा में बिल का समर्थन कर रही थी अब वो अपने ही पार्टी में उठते विरोध के कारण पीछे हटती जा रही है.....यानि आम सहमति के नाम पर महिलाओं के आरक्षण का मुद्दा अभी कुछ दिनों के लिए खटाई में पड़ सकता है......

3/22/2010

माला के फेर में......

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माला फेरत जग फिरा, फिरा ना मन का फेर।

कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर।।

कबीर दास ने इस दोहे में लोगों को यही बताने की कोशिश की थी कि इस संसार में माया को त्याग कर अपने मन को पवित्र करो, माला फेरने से आप इस माया रुपी संसार के भवर से बच नहीं सकते........ कबीर दास ने जिस तरह से माला को लेकर इस दोहे में बताने की कोशिश की इस को त्याग कर मन को पवित्र रखो। लेकिन इस समय हमारी राजनीतिक पार्टियों इसी मायारुपी माला के फेर में पड़ चुकी है....... जहां देखा जाय वहां मालाओं की चर्चा गर्म है......मालाओं के प्रयोग करना राजनीतिक पार्टियों के लिए कोई नयी बात नहीं है.....हर पार्टी के मंच को मालाओं से आप लदा हुए देख चुके होगे.......ये मालाएं भगवान के गले से लेकर हमारे अपने नेताओं के गले की शोभा बढ़ाते रहे है......तो कभी शादी जैसे पवित्र बंधन में बधते वक्त लोग इसी माला का इस्तेमाल करते रहे है। ये तो रही फूलों के मालाओं की बात.....लेकिन इस समय पैसे के मालाओं को लेकर चर्चा का बाजार काफी गर्म है......जो मायावती को बसपा की रजत जयंती पर पहनाया गया.... कहा जाता है कि इस माले में हजार-हजार के नोट लगाये गये थे.......इस मालें में लगे नोटों की कुल कीमत मात्र 5 करोड़ ऑकी गयी थी। इस माले को लेकर मीडिया और राजनीतिक पार्टियों में खुब हो-हल्ला मचा और इस को लेकर एक जनहित याचिका भी लखनऊ में डाली गयी और सीबीआई जाच की मांग की गयी......लेकिन अदालत ने इस मामले को खारिज कर दिया। माले को ही लेकर बसपा यानि मायवती के घोर विरोधी रही सपा यानि मुलायम सिंह यादव चर्चा में आ गये.....फर्क सिर्फ इतना है कि मुलायम सिंह माला पहनाने को लेकर चर्चा बटोर रहे है.......यह बाकया भी लखनऊ का है जहां राममनोहर लोहिया के जन्म शताब्दी समारोह के दिन लोहिया की मूर्ती का माला पहनाने चले गये। मुलायम सिंह यादव जिस मूर्ती का माल्यार्पण कर रहे थे उसका अनावरण भी नहीं किया गया था......मुलायम को ये डर सता रहा था कि कहीं इस मूर्ती का अनावरण मायावती के हाथों ना हो जाय.....इससे पहले मैं ही इस पर माला पहना कर अपने और अपनी पार्टी के लोहिया के नुमाइन्दगी का सबूत दे दू.......लेकिन खास बात ये रही कि जिस तरह से उन्होंने इस मूर्ती को माला पहनाया....उसे देख कर यही लग रहा था कि वो लोहिया का सम्मान कम अपना कुछ ज्यादा कर रहे थे........इसी माला की कड़ी में एक और राजनेता का नाम जुड़ता नज़र आ रहा है और यह मामला है बिहार की राजधानी पटना का......जहां लोक जनशक्ति पार्टी के नेता साबिर अली को उनके समर्थकों ने छह टन की माला पहना दी......और तो और इस माला को पहनाने के लिए क्रेन का इस्तेमाल करना पड़ा......आखिर ये माला का फेर है जिससे बड़े-बड़े सन्यासी नहीं बच सके........तो ये राजनेता कैसे बच कर निकल पायेगें.......




3/10/2010

अब आम सहमति के नाम पर टालमटोल.........

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राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पर जिस गहमागहमी और जल्दबाजी में सरकार ने पारित करवाया इससे यही जान पड़ता था कि ये बिल जल्द ही पास हो जायेगा। लेकिन अब जिस तरह महिला आरक्षण बिल को लेकर संसद के अन्दर और बाहर हंगामा हो रहा है सरकार सहम चुकी है। महिला आरक्षण बिल को लेकर विरोध का स्वर जिन पार्टियों के तरफ से उठ रही है वो किसी भी कीमत पर इस बिल को लोक सभा में पारित नहीं होने देना चाहते है..... इस कड़ी में लालू, मुलायमऔर शरद यादव बार- बार संसद में इस बिल का विरोध कर रही रहे है....साथ ही साथ वो संसद के बाहर प्रधानमंत्री मनमोहन लिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस मामले का कोई सर्वमान्य हल की बात कह रहे है। महिला आरक्षण बिल का मामला अभी तो कुछ दिनो के लिए टलता नज़र आ रहा है..... अब सरकार भी आम सहमति की बात कह रही है.....आज लोक सभा में प्रवण मुखर्जी ने कहा कि वो आम सहमति के बाद ही इस बिल को लोक सभा में पेश करगी। महिला आरक्षण विधेयक पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद और जदयू के अध्यक्ष शरद यादव की आपत्तियों का जवाब देते हुए मुखर्जी ने लोकसभा में कहा कि सभी मतभेदों को सुलझाने और आम सहमति बनाने के बाद ही सरकार महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पेश करेगी। उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने पहले भी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर आम सहमति कायम करने की कोशिश की लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। मुखर्जी ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने में कोई एतराज नहीं है और इस मसले पर प्रधानमंत्री भी इन नेताओं से बात कर चुके है। मुखर्जी ने कहा कि किसी भी विधेयक पर निर्णय संसद के सदस्यों द्वारा संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही लिया जाना चाहिए। लेकिन सरकार जिन बातों को लेकर आम सहमति की बात कर रही है दरअसल हकीकत कुछ और ही है...... कांग्रेस सरकार अपने पार्टी हो रही गुटबाजी के स्वर को भाप कर इस तरह की बात कह रही है..... कांग्रेस के कुछ नेता खुले तौर पर महिला आरक्षण बिल के मौजूदा स्वरुप को स्वीकार करने को तैयार नहीं है.....यानि अब इस बिल पर जो कुछ हो रहा है उसे तो यही कहा जा सकता है कि राज्य सभा में बिल पास होने के बाद अब राजनीति शुरु हो चुकी है....... वहीं बीजेपी महिला बिल का लोक सभा में समर्थन की बात तो कह रही है......लेकिन बीजेपी के कुछ सांसद इस बिल के विरोध में खड़े हो गये है.........इसी विरोध के स्वर को भापते हुए बीजेपी ने अपने संसद सदस्यों के लिए व्हिप जारी करने का मन बना लिया है। अब बीजेपी और कांग्रेस के लिए महिला आरक्षण बिल पास कराना ढेडी खीर बनता जा रहा है.......जो इस बिल को पूरी तरह से समर्थन कर रहे थे...... अब आम लहमति बनाने का मन सरकार बना चुकी है....और संसद की कार्यवाही 13 मार्च के बाद एक महीने के लिए बन्द हो जायेगी....यानि अब ये बिल एक महीने के लिए तो टल ही जायेगा ऐसे हालात बनते नज़र आ रहे है। आखिर सरकार को इस बात का अंदाजा तो पहले ही था कि कुछ पार्टियां इसका विरोध कर रही है.....तो सरकार को राज्य सभा में इस बिल को बिना बहस पास करवाने की जल्दी क्या थी......पहले ही क्यों ना इस पर आम महमति बनाने की कोशिश की गयी.... क्या सरकार महिला के हितों की हिमयती का नाटक मात्र कर रही थी...... सवाल तो बहुत है जिसका जबाज आम लोग सरकार से चाहते है......लेकिन अहम बात ये है कि महिला आरक्षण बिल अब आम सहमति के नाम पर टलता नज़र आ रहा है....

3/08/2010

महिलाओं को आरक्षण........अभी देर लगेगी...

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8 मार्च को राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पेश किये जाने से पहले का मंजर तो हम देख ही चुके थे। किस तहर से मर्यादा को ताख पर रख कर हमारे सांसदों ने सदन की गरीमा को ताख पर रख दिया था। इन सांसदों को राज्य सभा के सभापति हामिद अंसारी ने बजट सत्र से बाकी की कार्यवाही से बर्खास्त कर दिया गया। संसदीय कार्य राज्यंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने सपा के कमाल अख्तर, आमिर आलम खान, वीरपाल सिंह और नंद किशोर यादव, जद यू के निलंबित सदस्य डा. एजाज अली, राजद के सुभाष यादव तथा लेाजपा के साबिर अली को मौजूदा सत्र के शेष भाग के लिए आज निलंबित करने का एक प्रस्ताव पेश किया। जिसे ध्वनि मत से पारित कर लिया गया और सभापति ने इनकी बर्खास्ती का फ़रमान सुना दिया। लेकिन इसके बाद भी सदन की कार्यवाही को बार-बार स्थगित करना पड़ा। महिला आरक्षण बिल को लेकर सपा, बसपा, आरजेडी और जेडीयू के कुछ सासद अड़ चुके है। इन पार्टियों की साफ राय है कि महिला आरक्षण बिल को मौजूदा स्वरुप में पारित नहीं होने देगे। इन पार्टियों का रुख साफ है इसलिए ये सदन के अन्दर बिल का विरोध कर रहे है और सदन के बाहर सरकार के साथ बैठक कर इस बिल को रोकने की कोशिश कर रहे है। आज सुबह से ही बैठकों का दौर शुरु हो चुका है। इसी क्रम में लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की और इस बिल को संसोधित कर पेश करने की मांग की। साथ ही साथ प्रवण मुखर्जी से भी मुलाकात की लेकिन बैठक बेनतीजा रही। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गॉधी से भी मुलाकात का दौर चला और आम सहमति के आधार पर बिल पेश करने की मांग उठाई गयी। वहीं बीजेपी और कांग्रेस इस को को पास कराने की जल्दबाजी में लग चुकी है, वो किसी भी कीमत पर बिल को पास कराने की होड़ में लग चुके है। बीजेपी के सांसद इस मुद्दे को लेकर संसद के बाहर नारेबाजी तक पर उतारु हो चुके है। दूसरी तरफ कानून मंत्री वीरप्पा मोइली का कहना है कि सरकार इस बिल को जबरन पास नहीं कराना चाहती है। यानि सरकार इस बिल को बिना बहस पास नहीं कराना चाहती है। लेकिन अहम सवाल ये है कि महिला आरक्षण बिल को लेकर जो खीचतान मची है कहा तक उचित है। सभी पार्टियों की अपनी-अपनी मजबूरियां है जो इस बिल के पास होने के बीच रोड़ा बनते जा रहे है। वही भाजपा ने दोहराया कि महिला आरक्षण विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा नहीं होने पर वह मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। वही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ऐलान किया था कि सरकार विधेयक को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पारित कराएगी लेकिन वह अपने वायदे पर कायम नहीं रहीं। अब सब पार्टियों के बयानों से तो यही जान पड़ता है कि आम सहमति के नाम पर महिला आरक्षण बिल कुछ दिनों के लिए टाला जा सकता है...... यानि महिला आरक्षण बिल खटाई में पड़ चुका है।

3/07/2010

ये कैसा सम्मान.....


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आज यानि 8 मार्च को भारतीय राजनीति के इतिहास में सवर्णिम दिन माना जा सकता है....... आज ही अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस भी मनाया जा रहा है..... और इसी को ध्यान में रख कर भारतीय राजनीति का मन्दिर कहे जाने वाले संसद में महिलाओं को संसद में प्रतिनिधित्व देने के लिए महिला आरक्षण बिल को राज्य सभा में पेश कर दिया गया है। लेकिन इस बिल को पेश करने में सरकार को भारी मशक्त करनी पड़ी...... इस विल को संसद की पटल पर पहुचने से पहले भारी विरोधों का सामाना करना पड़ा है..... अभी इस महिला आरक्षण बिल को पास करवाना सरकार के टेढी खीर बनता नज़र आ रहा है..... आज इस बिल को राज्य सभा में पेश करने में कुछ पार्टियों को विरोध करना पड़ा..... इस विरोध के कारण संसद की कार्यवाही को तीन बार स्थगित करना पड़ा। सभी राजनीतिक दलों को महिला आरक्षण बिल को लेकर अपने-अपने तर्क है.....कोई इसके समर्थन की बात कर रहा है....तो कोई इस बिल को अपनी पिछली सरकार की देन बता रहा है......तो कोई खुले तौर पर बिरोध कर रहा है....... और इस विरोध के पीछे अपनी दलील दे रहा है।


राज्य सभा में 2 बजे इस बिल को संसद के पटल पर केंद्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली रखने की कोशिश की तो सपा और आरजेडी के सदस्य ने जिस तरह के कारनामें को अंजाम दिया वो कहीं भी सही नहीं ठहराया जा सकता...... राज्य सभा के सभापति हामिद अंसारी के आसन तक पहुच कर बिल को फाड़ा गया और उन्हें बोलने से रोकने के लिए अनके माइक को तोड़ने की कोशिश की गयी। इस मंजर को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि ये मुद्दा विरोध तक सीमित नहीं रह गया बल्कि गुण्डागर्दी तक जा पहुची है..... सपा के सांसद ने बिल को फाड़ा तो आरजेडी के सांसद ने माइक तोड़ डाली...... क्या ये हमारे जन प्रतिनिधि को शोभा देता है.....क्या हमारे सांसदो का ये व्यवहार संसद की गरिमा के अनुरुप सही ठहराया जा सकता है..... कहीं ना कहीं ये सब संसद की गरिमा पर एक करारा तमाचा है जो संसद को बदनाम कर चुका है। राज्य सभा में इस मंजर के बाद मार्शल को तैनात करना पड़ा....यानि संसद जंग का मैदान बन चुकी है।

आखिर सपा, आरजेडी, बसपा और जेडीयू इस बिल के मौजूदा बिल का समर्थन नहीं करना चाहती है तो सरकार को इनसे बातचीत कर कोई रास्ता क्यों नहीं निकाल रही है..... सपा, आरजेडी, बसपा और जेडीयू इस आरक्षण बिल में दलित, अल्पसंखयक और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए इस बिल में अलग से आरक्षण की मांग कर रहे है......इनका मानना है कि मौजूदा आरक्षण बिल के स्वरुप से पिछड़े वर्गों की महिलाओं को फायदा नहीं होने वाला है। यानि आरक्षण में आरक्षण की मांग की जा रही है.......जहां तक देखा जाय तो इनकी दलील को गलत नहीं ठहराया जा सकता।

जिस तरह से इस महिला आरक्षण बिल को लेकर संसद और संसद से बाहर महाभारत मचा हुआ है और जिस तरह से शब्दवाणों का दौर चल रहा है.....और राजनीतिक पार्टियां इस बिल पर अपना क्रेडिट लेने की फिराक में लग चुकी....जबकि इस बिल को सदन की पटल पर रखने पर इतनी मारामारी मच चुकी है....बिल के पास होने पर राजनीति पार्टियां भुनाने को पूरी कोशिश करेगी। एक बात तो सब दलों में कॉमन है कि महिलाओं को संसद में आरक्षण मिले लेकिन कुछ लोग इस आरक्षण में जाति और धर्म के आधार पर भी आरक्षण की मांग रहे है तो कुछ लोग इस का विरोध कर रहे है......लेकिन जिस तरह से इस बिल को ले कर खीचातानी मची है....अगर ये बिल किसी तरह से पास भी हो जाय तो ये महिलाओं के लिए कैसा सम्मान.....जिसे देने के लिए देश की गरिमा को दाव पर लगा दिया गया...... क्या हमारे देश की महिलायें इसी सम्मान की हकदार है......

3/06/2010

बाबाओं की हसीन दुनियां.........

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संत परंम्परा के अनुसार संत कुछ लेते हैं लेकिन संत नित्यानदं ने उल्टा कुछ दिया है। ये शब्द हैं गुजरात राज्य के मुखिया नरेंद्र मोदी के जो उन्होने नित्यांनंद के बारे में कहे। ये वही बाबा नित्यानंद हैं जो आज कल पुलिस से बचने के लिए फरार हैं। एक प्रदेश का मुखिया उस संत की तारीफ में कसीदे पढ़ राह है जिसके आश्रम में अय्याशी और लड़कियों के साथ रंग रलियां मनाना बाबा का पसंदीदा खेल हो। गुजरात के मुखिया ने जिस ढंग से सीडी प्रकरण के बाबा की शान मे कसीदे पढे वो भले ही बाबा और मोदी के रिश्तों को उजागर करने के लिए काफी हों लेकिन उसका सबसे खतरनाक पहलू ये हैं कि राज्य के मुखिया की वकालत के बाद पुलिस और प्रशासन इस अय्याशी और अश्लील सीडी के आरोपों से घिरे बाबा की जांच के बजाए उसको सुरक्षा देने में लग गया होगा। बगलूरु के बाबा नित्यानंद के आश्रम में लड़कियां भी आती थी और उनके साथ न जाने क्या होता था। ये तमाम चर्चाएं गर्म थी। भक्ति और भगवान का सही पता बताने के नाम पर लोगों की आस्था से खिललवाड़ करने वाले बाबा के आश्रम पर कोई उंगली उठाने की इसलिए हिम्मत नहीं करता था कि बड़े बड़े नेता ही नहीं बल्कि पुलिस और प्रशासन के आला अफसर नित्यानंद के आश्रम में हाज़िरी लगाते थे। सूत्रों की माने तो नित्यानंद अपने काले साम्राज्य को बढाने के लिए कई अधिकारियों और नेताओं की मदद लेता था। और इसके लिए कई नेता और अफसर या तो उसकी मुठ्ठी में थे या फिर उसके नैक्सस में शामिल थे। इतना ही नहीं कई लोगों का ये भी कहना है कि बाबा ने कई लोगो की अश्लील सीडी तक बनाई हुई थी। बाबा के आश्रम में रंग रलियां मनाने वाले कई लोग अपनी सीडी सामने आने के डर से कभी कुछ बोल नहीं पाते थे। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में यहां के एक सेवक लैनिन का भी रोल अहम बताया जा रहा है। हांलाकि यही लेनिन बंटवारे और लालच के चक्कर मे संत के भी खिलाफ हो गया। और उसने बाबा की ही अश्लील सीडी उजागर कर दी। सीडी को देखने वालों के मुताबिक नित्यानंद कई लड़कियों और अभिनेत्रियों के साथ वो सब कुछ करते देख गये जो शायद एक संत के लिए शोभा नहीं देता। ऐसे में नरेंद्र मोदी की नित्यानंद से नज़दीकियों और उनके रोल की जांच होना बेहद ज़रूरी है ताकि ये बात साफ हो सके कि संत नित्यानंद ने देने के नाम पर मोदी का क्या क्या दिया। इसके अलावा पिछले कुछ दिनों में देश भर मे आस्था के नाम पर जो हुआ वो किसी भी तरह आस्था का परिणाम नहीं हो सकता। चाहे दिल्ली से पकड़े गये बाबा इच्छाधारी यानि राजीव रंजन द्विवेदी हों जो दिल्ली में हाई प्रोफाइल सैक्स रैकेट चला रहा था। दिल्ली पुलिस के हाथ लगे इस बाबा के मंदिर मे बाक़ायदा लड़कियों को रखने और उनके साथ रंग रलियां मनाने के लिए पूरी इंतिज़ाम था। लोगों का यहां तक कहना है कि आश्रम में बडे बड़े लोग आते थे। वावा राजीव रंजन के साथ पूर्व मंत्री डीपी यादव, दिल्ली के नेता विजय जौली और बीजेपी के पूर्व सांसद कीर्ति आज़ाद तक के सम्बंध बताए जा रहे हैं। इतना ही नहीं ददुआ जैसे खुंखार डकैत को हथियार सप्लाई करने वाला बाबा इंच्छाधारी देश की राजधानी में अय्याशी के दम पर अपना रैकेट चलाता रहा और पुलिस बेखबर थी..... उधर अपनी पत्नी के श्राद्ध मनाने वाले कृपालु महाराज इसलिए फरार हैं कि वहां साठ से ज़्यादा लोगो की उनके आश्रम में मौत हो गई है.........अब दिल्ली के सटे गाजियाबाद में एक बाबा अनुप कुमार पर आरोप है कि एक लड़की के प्यार में पागल हो चुका है। इस बाबा ने इस लड़की का अपहरण कर लिया है और वो इस लडकी से शादी करने के फिराक में है। आशाराम बापू की कथनी और करनी का फर्क तो सबके सामने हैं ही। ऐसे में अब जनता को खुद ही तय करना होगा कि वो आदमी में भगवान को तलासने के चक्कर में किसी को भी शैतान बना सकती है। भगवान तो भगवान होता है, अब इंसान में भगवान को ढूडना हमारी कहा की समझदारी है.....

2/17/2010

फिर राम नाम.........


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बीजेपी ने राम और राम मंदिर की चिंता फिर से करनी शुरु कर दी है...... इसी मुद्दे के सहारे वो देश की राजनीति में केन्द्र की सत्ता तक पहुचनें में कामयाब हुये थे। लेकिन पिछले दो लोक सभा चुनाव में वो सत्ता से दूर होते नज़र आये तो पार्टी में सिरफुटवल शुरु हो गयी..... पार्टी में काफी फेरबदल हुए ......प्रधानमंत्री पद के दावेदार लाल कृण्ण आडवाणी को अपने इस दावे से हटना पड़ा.....तो राजनाथ सिंह को पार्टी प्रमुख के पद से छुट्टी लेनी पड़ी.... बीजेपी में यशवत सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया गया...... कभी अटल विहारी बाजपेयी के समय एनडीए में सहयोगी दलों की बाढ़ हुआ करती थी.....लेकिन सत्ता से दूरी और बीजेपी में भटकाव की बज़ह से ये सहयोगी भी इन से किनारा कसते गये....... अब बीजेपी को सहयोगी दलों की तलाश करनी पड़ रही है...... यानि बीजेपी को अब एक मुद्दे की तलाश है..... जिसके बल पर वो अपने पूराने आधार की तलाश में लग चुकी है.......इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में राम के राग को फिर से अलापना शुरु कर दिया है...... ये वक्तवय दिया खुद पार्टी के नये अध्यक्ष नितिन गडकरी ने....... अब बीजेपी एक बार फिर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का संकल्प लेते हुए मुसलमानों से इसका रास्ता साफ करने की अपील की.... नितिन गडकरी का मानना है कि राम मंदिर के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन हो चुका है...... और राम के नाम पर हजारों कारसेवकों ने अपनी जान दे दी है......लेकिन इस बार राम के नाम पर बीजेपी कोई आंदोलन नहीं करना चाहती है.... वो इस मामले में मुसलमानों से सहयोग की अपील कर रहा है..... और हिन्दुओं की भावनाओं को समझते हुए सहयोग की उम्मीद कर रही। बीजेपी अपनी हार, घटते जनाधार और पार्टी की आपसी कलह की बज़ह से राम मुद्दे के बल पर अपनी ताकत को बढ़ाने की कोशिश में लग चुकी है...... लेकिन सवाल ये उठता है कि सत्ता में रहते हुए बीजेपी को ये क्यों नहीं याद आया....... अब सत्ता से बाहर होने पर राम फिर याद आ रहे है.। आखिर बीजेपी राम के सहारे केन्द्र की सत्ता तक पहुची थी या फिर अटल का वो व्यक्तितव जिसका हर कोई कायल था.....या फिर बीजेपी में आससी टकराव की वज़ह से अपनी शाख बचाने को मज़बूर हो गयी है। हर पार्टी किसी ना किसी मुद्दे के सहारे राजनीति चमकाने की कोशिश करती है....... लेकिन बीजेपी पर राम मुद्दे का एक मार्क लग चुका था..... पिछले दिनों वो इस मुद्दे से हटकर सेकुलर बनने की कोशिश में लगी थी....लेकिन बीजेपी के सेहत के लिए यह टॉनिक फायदे की जगह नुकसान देने लगा.....तो बीजेपी ने अपनी सेहत गिरती देख अपनी पूरानी आजमाई टॉनिक को आजमाने की कोशिश शुरु कर दी..... लेकिन बीजेपी को तो ये देख लेना चाहिए की कहीं इस टॉनिक की एक्सपायरी डेट तो नहीं आ चुकी है.....या एक्सपायर ही हो चुकी है....

2/10/2010

.....अब चाचा VS भतीजा

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मुम्बई पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है.....मुद्दा ये है कि आखिर असली देश भक्त कौन है...... इस मुद्दे को लेकर शाहरुख खान को शिवसेना देशद्रोही बताने की कोशिश कर रही है। शिवसेना ने अपने आप को देशभक्त बताकर शाहरुख के बयानों का बहाना बनाकर राजनीति की रोटी गरम करने की कोशिश कर रही है... इसी कड़ी में जो लोग शाहरुख का समर्थन में आये उनकों भी बाल ठाकरे की तरफ से बिरोध का सामना करना पड़ा। इस मुद्दे को लेकर मुम्बई में शाहरुख खान और शिवसेना की जंग मच चुकी है..... कभी माई नेम इज खान के पोस्टर फाड़े जा रहे है.... कभी इस फिल्म के एडवान्स बुकिंग के समय पथराव हो रहे है.....साथ ही साथ बाल ठाकरे की तरफ से शाहरुख को खुलेआम धमकियां दी जा रही है..... इसे देख कर तो यहीं लगता है कि मुम्बई में बाल ठाकरे की दादागिरी अपने उफान पर है.....सिनेमा घर के मालिक तो इस फिल्म को तो दिखाना चाह रहे है लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा का खतरा नज़र आ रहा है...... महाराष्ट्र सरकार इस फिल्म की पूरी सुरक्षा की बात तो कह रही है..... लेकिन सिनेमा हॉल के मालिक किसी भी खतरे को मोल लेना नहीं चाहते..... इसी कड़ी में कुछ सिनेमा हॉल के मालिकों ने अपने यहां इस फिल्म को चलाने से मना कर चुके है। यानि मुम्बई में अशोक चव्हाण का राज नहीं बाल ठाकरे की चल रही है...... लेकिन इस मुद्दे में एक कड़ी और जुड़ चुकी है....... अब ये जंग बाल ठाकरे बनाम शाहरुख ना रह कर बाल ठाकरे बनाम राज ठाकरे में बदल चुकी है...... यानि ये जंग चाचा और भतीजे के बीच जा पहुची है..... राज ठाकरे अब शाहरुख के समर्थन करते नज़र आ रहे है.... राज ने साफ कहा कि शिवसेना दोहरा मापदंड अपना रही है.....वो शाहरुख का तो विरोध कर रही है लेकिन सदी के महानायक अमिताभ का क्यों नहीं..... जो अमन की आस कार्यक्रम में पाक कलाकारों के साथ नज़र आये...... और तो और अमिताभ की फिल्म रण को अपने घर में बैठक उन्ही के साथ देख रहे है। यानि अब इस मामले को राजनितिक फायदे का इस्तेमाल किया जा रहा है..... राज को लग रहा है कि उनका मराठी वोट बैंक कही कम ना हो जाय इस लिये वो अमिताभ को अपना निशाना बनाया साथ ही साथ शिव सेना पर दोहरी राजनित का आरोप भी मढ़ दिया। यानि इस जंग में एक नया मोड़ ये है कि चाचा और भतीजे की राजनित शुरु हो चुकी है.... राज ने शाहरुख की फिल्म का विरोध ना करने का फैसला किया है..... अब ये देश भक्ति का मुद्दा...जो शिवसेना कह रही थी..... राजनिति का मुद्दा बन चुकी है..... और इसको भुनाने की दौर भी शुरु हो चुकी है..... देखना ये होगा कि कौन कितना फायदा उठाता है...... यानि अब यह एक पारिवारिक मुद्दा बन गया है.....चलों ये तो ठीक है कि देश भक्ति की बात करने वाले ये लोग यदि आपस में उलझे रहे तो....... देश का कुछ तो भला जरुर होगा......

Badlaw ki Taraf...: ‘माई नेम इज ठाकरे’

Badlaw ki Taraf...: ‘माई नेम इज ठाकरे’

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‘माई नेम इज ठाकरे’


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शाहरुख खान की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ के विरोध का मन बना लिया है ‘माई नेम इज ठाकरे’ परिवार ने.... या यूं कहे कि खान और ठाकरे में मुम्बई में पूरी तरह से ठन चुकी है। शाहरुख ने पाक क्रिकेटरों पर अपने विचार क्या दे दिये कि ठाकरे-कंपनी उनके पिछे हाथ धो कर पड़ चुकी है....... पहले तो शाहरुख पर पाक की हिमायत करने का आरोप मढ़ा गया..... फिर उनकों मुम्बई में आने पर देख लेने की धमकियां दी गयी..... और तो और शाहरुख को पाक में रहने की सलाह तक दी गयी.... यानि अब ठाकरे परिवार ये खुद कह रहा है कि ‘माई नेम इज ठाकरे’ और मुझ में है दम..... पहले तो इस मामले को लेकर कथित शिव सैनिकों ने इस फिल्म के पोस्टर को फाड़ा गया.....और सारेआम शिव सेना के लोग धमकियां देते नज़र आये.... इस मामले की गंभीरता को लेते हुए राज्य सरकार ने शाहरुख की सुरक्षा मुहैया करना का आश्वासन दिया......आखिर देश में लोगों को अपने ही लोगों से सुरक्षा का खतरा नज़र आने लगा ...और उन लोगों से जो अपने आप को जनता का नुमाइनदा कहते हुए फिरते है..... अगर ये शिव सेना अपना आप को जनता का नुमाइनदा कहते है तो उन माफियाओं और इन में फर्क क्या है.... अब जब शाहरुख की फिल्म माई नेम इज खान के रिलीज में कुछ ही दिन बाकी है और इस फिल्म की एडवान्स बुकिंग शुरु क्या हुई कि शिव सैनिक आग बबुला होकर सिनेमा घरों में तोड़-फोड़ शुरु कर दी...... आखिर जिस तरह से शिव सेना शाहरुख के खिलाफ जो बर्ताव कर रही है क्या ये एक राजनैतिक पार्टी को शोभा देता है...... शिव सेना मुम्बई में कभी उत्तर भारतियों को निशाना बनाती है तो कभी क्रिकेटरो को तो कभी किसी बात को लेकर किसी सेलीब्रेटी को निसाना बनाती रही है..... क्या ठाकरे परिवार को देश के मुद्दे पर मनमानी करने का ठेका ले रखा है..... क्या हमारी कानून व्यवस्था इतनी लच़र हो चुकी है कि इन पर नकेल नहीं लगाया जा सकता...... या हमारी सरकारें इन पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकती या करना ही नहीं चाहती। बाल ठाकरे ने तो शाहरुख की तुलना पाक आंतकी कसाब से कर डाली और शाहरुख की सुरक्षा दिये जाने पर पर खुद की और अपनी पार्टी के सांसद और विधायको की सरकारी सुरक्षा लेने से मना कर दिया.... आखिर इन लोगों को सुरक्षा की जरुरत ही क्या है जो दूसरों के लिए खुद खतरा बने हुए...... क्या मुम्बई ठाकरे परिवार की प्रापर्टी बन चुकी है जो ये लोग किसी भी तरह से इसे भुनाने की कोशिश करते रहेगे.....

2/03/2010

..........आखिर डर गया बॉलीवुड

मुम्बई की फिल्म नगरी जिसे बॉलीवुड कहते है....... भारत की फिल्म निर्माण और कमाई के मामलें में सबकों पछाड़ चुका है... यहां बनने वाली फिल्मों से रातों- रात करोड़ों के वारे निवारे होते है। बॉलीवुड पर ये हमेशा आरोप लगते रहे है कि यहां पर बनने वाली फिल्मों में अन्डरवर्ल्ड का पैसा लग रहा है......और हमेशा से बॉलीवुड पर अन्डरवर्ल्ड का खौफ छाया रहता है..... और बॉलीवुड से धन की उगाही की खबर सामने आती रहती है। लेकिन आजकल बॉलीवुड डरा और सहमा हुआ है...... और ये खौफ है ठाकरे परिवार का....... शाहरुख खान को ये परिवार लगातार धमकियां दे रहा है..... आखिर शाहरुख खान का कसूर बस इतना है कि वो पाक के क्रिकेट खिलाड़ियों की हिमायत कर डाली। इस बात में शाहरुख खान ने कौन सी गलती कर दी जिससे देश की अस्मिता पर खतरा आ गया। लेकिन शिवसेना जैसे देश भक्तों के लिए एक मुद्दा मिल गया और इस मामले को लेकर शाहरुख के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। मुम्बई में खान को चुनौती मिल रही कि वापस आने पर देख लिया जायेगा..... मुम्बई में शाहरुख की फिल्म ‘ माई नेम इज खान’ के प्रर्दशन पर रोक लगाना का फरमान जारी कर चुकी है। इस मामले को लेकर बॉलीवुड खुले तौर पर ठाकरे परिवार का विरोध नहीं कर रहा है..... कहीं ना कहीं शाहरुख खान अपने आप को ठाकरे के साथ इस लड़ाई में अकेला खड़ा नज़र पा रहे है....... ये कोई नया मामला नही है कि बॉलीवुड को ठाकरे परिवार पहली बार धमकायां हो.... ऐसे मामले कई बार हो चुके है..... लेकिन हर बार बॉलीवुड हार कर मांफी मागना ही उचित समझा.... आखिर क्यों ठाकरे परिवार की मनमानी के आगे लोग झुकते जा रहे .... क्यों ना लोग अपनी आवाज उठा रहे है ..... जिस दिन शाहरुख की फिल्म के पोस्टर मुम्बई से हटाये जा रहे थे उसी दिन सदी के महानायक अपनी फिल्म रण को बाल ठाकरे को दिखाने पहुच गये। कुछ गिने चुने चेहरे जो शाहरुख के साथ खड़े तो हुए लेकिन वो भी खुले तौर पर ऐसा नहीं कर पाये...... यानि यूं कहे तो डर रहा है बॉलीवुड ठाकरे की खौफ से....... लोग यही सोच रहे होगे कि भाई पानी में रह कर मगर से बैर ठीक नहीं है........

मुम्बई में.....डी कंपनी.......से टी कंपनी

मुम्बई के पीछले कुछ साल पहले के इतिहास पर नज़र डाले....... जब लोग इस शहर को बॉम्बे के नाम से पहचानते थे..... तब इस बॉम्बे में भाई लोगों का बोलबाला हुआ करता था... भाई बोले तो बॉम्बे में फैला गुन्डों का राज जिसके दहशत से शहर के लोग की रुह तक कांप जाती थी। इन भाईयों का दहशत इस कदर हुआ करता कि सरकार से लेकर पुलिस प्रशासन तक के लोग सहम जाते थे। इन्हीं भाइयों के गिरोह में दहशत का सबसे बड़ा नाम था डी कंपनी का जिसका सरगना था दाउद इब्राहीम....... जिसके दहशत की खबर आज भी आती रहती है..... बस फर्क सिर्फ इतना है कि वो इस शहर से ही नहीं देश से बाहर है..... जिसके तलाश में आज भी भारत की सरकार जीतोड़ में लगी है। लेकिन आज तक इस डी कंपनी का दहशत पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है..... लेकिन इस कंपनी का खौप लोगों में थोड़ा कम तो जरुर हो गया है। अब मुम्बई में एक और कंपनी का दहशत फैल गया है...... इस कंपनी का दहशत सिर्फ मुम्बई में ही नहीं पूरे देश में फैला हुआ है........ जी हां हम बात कर रहे है टी कंपनी...... बोले तो ठाकरे कंपनी। आजकल मुम्बई ठाकरे परिवार के दादागिरी से पूरी तरह से परेशान हो चुका है..... डी कंपनी तो छिप कर लोगों में दहशत फैलाती थी..... लेकिन ये टी कंपनी तो सरेयाम अपनी गुन्डागर्दी पर का खौप लोगों में फैला रही है....... इस कंपनी पर नकेल डालने में राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक ने अपने हाथ खड़े कर दिये है और-तो और पुलिस प्रशासन इन गुन्डा गर्दो को सुरक्षा मुहैया करा रही है। यदि ठाकरे परिवार का ये रवैया ठीक है तो कश्मीरी अलगाववादीयों और अफगान तालिबानी में फर्क क्या है....... टी कंपनी की ये दादागिरी कोई नयी बात नहीं वो काफी समय से उत्तर भारतीयों पर हमले शुरु कर दिये थे...... लोगों पर अपने तालिबानी फ़रमान थोपने की कोशिश कर रहा है...... मराठी मानुष के नाम पर ये लोगों महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में लगे है। आखिर जब हमारे देश का संविधान में किसी राज्य, भाषा, जाति, संप्रदाय और मज़हब के भेदभाव को नहीं मानता तो आखिर ये टी कंपनी लोगों में किस आधार पर ये करने की कोशिश कर रही है...... क्या ये टी कंपनी कानून, संविधान और व्यवस्था से बड़ा है....... यदि इसका जबाब हां है तो कुछ गलत नहीं हो रहा मुम्बई में...... लेकिन इसका जबाब नहीं है तो आखिर ये सब कैसे हो रहा है। इस टी कंपनी ने आजकल मुम्बई में जिस तरह से देश हित को लेकर दहशत का माहैल पैदा किया है ..... और लोगों में ये जताने की कोशिश कर रहा है कि उनसे बढ़कर देश प्रेमी कोई नहीं है.......तो ये सरासर गलत है..... जिस तरह से विदेशी क्रिकेटरों के मामले को भुनाने की कोशिश की जा रही है...... जिससे लगता है कि देश की इज्जत और सुरक्षा का जिम्मा इन्हीं के पास है..... लेकिन ऐसा कर के ये टी कंपनी देश की साख को भी बाट लगा रहे है..... लोगों में ये संदेश दे रहे है कि भारत में लोगों को कहीं रहने और बोलने की आजादी नहीं है...... यदि लोगों को कुछ भी बोलना है तो टी कंपनी से कॉपीराइट लेना पड़ेगा। यदि टी कंपनी के इस दादागिरी को रोका नहीं गया तो ये देश की अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा.....

2/02/2010

आखिर ..... आमची मुम्बई......किसकी

आमची मुम्बई का मुद्दा कोई नई बात नहीं है..... लेकिन ये मुद्दा पूराना भी नहीं है। मुम्बई या महाराष्ट्र मराठियों की है ये मुद्दा शिवसेना के विभाजन के बाद से ही काफी गरम हो गया.... राज ठाकरे ने जिस तरह अपने परिवार से अलग होकर अपनी नयी पार्टी एमएनएस की नींव रखी.....तो इस पार्टी को एक मुद्दे की तलाश थी और इनके हाथों ये मुद्दा मिला कि मराठियों की बात कर के महाराष्ट्र की राजनीति में अपना कुछ जनाधार बनाया जा सकता है। राज ठाकरे इसी मुद्दे के बल पर पिछले विधान सभा में कुछ सीटों पर अपनी जीत का परचम भी लहराया था....... लेकिन इस जीत से ना तो वो खुद या शिवसेना को महाराष्ट्र की गद्दी तक पहुंचने दिया...... शायद अब वो इस मुद्दे के बल पर अपनी राजनीति की रोटी गरम करने की कोशिश करने में लगे है। इस मुद्दे को लेकर एमएनएस और शिवसेना पूरी कोशिश कर रहे है। बाल ठाकरे कभी आईपीएल में ऑस्ट्रेलियां क्रिकेटरों को धमका रहे है तो कभी पाक खिलाड़ियों को खुली चुनौती दी जा रही है। मराठी मुद्दे को लेकर शिवसेना और उसके सहयोगी बीजेपी में भी ठन चुकी है...... दोनों पार्टियों के नेता उत्तर भारतीयों के मुद्दे पर जमकर बवाल मचा चुके है। उत्तर भारतीयों की मुम्बई में रक्षा के लिए आरएसएस ने संकल्प उठाया तो वाल ठाकरे ने जमकर बरसना शुरु कर दिया........ और इस मुद्दे पर बीजेपी और शिवसेना में तलवारें खींचती नज़र आयी........आखिर बीजेपी ने अपना जनाधार महाराष्ट्र में कम होता देख उत्तर भारत में अपनी पकड़ को कम ना होने के लिए इस मुद्दे पर अब बोलना शुरु किया है......और इस में वो अपने सहयोगी आरएसएस के सहारे इस मामले को उठाने की कोशिश में लगे है......लेकिन बाजेपी को ये मुद्दा अब क्यों दिख रहा... जो कभी शिवसेना के एक विश्वसनीय सहयोगी रहे है। यानि बीजेपी ने इस मुद्दे को उछाल कर उत्तर भारतीयों की सहानभुति लेने का मन बना लिया है...... ये बात तो रही राजनितिक फायदे की लेकिन शाहरुख कान ने पाक क्रिकेटरों को भारत में खेल की इच्छा क्या जताई शिवसेना उनके पीछे पड़ चुकी है...... शाहरुख को शिवसेना की तरफ से लगातार धमकियां दी जा रही है......... और-तो-और शाहरुख की हाल में ही रीलिज़ होने वाली फिल्म ‘माई नेम इज खान’ के पोस्टर शिवसेना ने मुम्बई से हटवा दिये........ और शाहरुख से अपने दियो बयान पर मांफी मांगने को कहा जा रहा है.......आखिर ठाकरे परिवार और तालिबानीयों में फर्क ही क्या है। बॉलीवुड भी शाहरुख के मामले में उनकी तरफ खड़ नहीं दिख रहा है........आखिर यह शिवसेना की दहशत है या बॉलीवुड का अपना निजी मामला....... लेकिन मामला जो भी हो शिवसेना की इन धमकियों जायज नहीं ठहराया जा सकता है। शिवसेना खुलेयाम मुम्बई में उत्तर भारतीयों को अपना निशाना बनाती रही है....... लेकिन ना तो केन्द्र सरकार ना तो महाराष्ट्र की सरकार ने इन पर नकेल लगाने की कोशिश नहीं की और तो और अशोक चव्हाण सरकार ने तो पीछले दिनों आग में घी लालने का काम कर रहो है......वो लोगों को मराठी सीखने की वकालत करते नज़र आये.... लेकिन वो इस मामले पर दबाव के कारण यू-टर्न तो ले लिया ...... लेकिन इस मामले को राज ठाकरे ने आगे बढाते हुए मुम्बई में फ़रमान जारी कर दिया की चालीस दिनों में मराठी सीखने का हुक़म दे डाला। अब बाल ठाकरे और राहुल गांधी में भी इस मामले पर बयानबाजी शुरु हो चुकी है....... राहुल को तो अब इटली वाली मॉ का बच्चा करारा दिया जा रहा है। शिवसेना और राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपना तालिबानी कानून थोपने की कोशिश कर रहा है......... लेकिन इस मुद्दे पर ना तो सरकार ना तो आम लोग भी खुले तौर पर इसके विरोध के लिए सामने नहीं आ रहे है। हमारी सरकार ऑस्ट्रेलियां में भारतीयों पर हो रहे हमले के लिए काफी रोष वयक्त कर चुकी है...... सरकार ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमले को रोकने की पूरी कोशिश कर रही है......... लेकिन देश में ही एक प्रदेश में काफी दिनों से यही हो रहा है और केन्द्र सरकार कोई कदम नहीं उठाना नहीं चाहती है....... जब देश का आम नागरिक अपने देश में ही सुरक्षित नहीं है ना ही देश में खुलकर बोलने के लिए आज़ाद है...... तो ऐसे में दूसरे देशों में अपने लोगों की सुरक्षा की मांग करना बेइमानी है......

2/01/2010

..........अमर प्रेम का..........अमर अंत

आखिर अब जाकर अमर सिंह और मुलायम सिंह की प्रेम कहानी का क्लाइमेंक्स हो गया जिसका इंतजार भारतीय राजनीति में बड़ी मुद्दत से किया जा रहा था। लेकिन इस के साथ-साथ जयाप्रदा को भी समाजवादी पार्टी से रास्ता दिखा दिया गया और चार विधायकों की भी छुट्टी कर दी गयी। अमर सिंह को सपा से निकालते वक्त ये आरोप लगाये गये कि वो पीछले एक महीने से पार्टी विरोधी गतिविधियां चला रहे है। अमर सिंह का पीछले चौदह सालों से मुलायम के साथ रहे है.....यानि रामायण में तो हमने सुना है कि राम तो चौदह साल बाद बनवास के बाद वापस आकर अपने भाई भरत से मिलते है........ अमर सिंह भी तो मुलायम को अपना भाई मानते थे.......... लेकिन इस कहानी में अमर सिंह को मुलायम सिंह यादव ने अपने साथ चौदह साल रखने के बाद बनवास का रास्ता दिखा दिया। अमर सिंह ये बार-बार कहते रहे थे कि मुलायम सिंह यादव उनके बड़े भाई की तरह है और सपा से उनका सम्बन्ध जीवन भर रहेगा........ लेकिन इस अमर प्रेम का अन्त चौदह सालों में ही हो गया। अमर सिंह के पीछले बयानों पर गौर करे तो वो बार-बार कहते रहे है कि समाजवादी पार्टी से जूते मारकर निकाला जायेगा तो ही वो बाहर जायेगा...... इस बयान के बाद सपा को कुछ नेता तो यहां तक कह दिये कि अमर सिंह बहुत इस वेशर्म इंसान है...... लेकिन अब अमर सिंह को लग चुका है कि पार्टी ने उन्हें जूते मार ही दिये है। अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के इस अलगाव की मुख्य वजह पार्टी में मुलायम परिवार की बढ़ती पैठ को माना जा रहा है......लोक सभा के मध्यावधि चुनाव फिरोजाबाद में हार से इस कहानी की नींव रखी जा चुकी थी......बार-बार अमर सिंह पार्टी में मुलायम सिमह यादव के परिवार की बढ़ रही दखलअंदाजी पर बोलते रहे.....वो इस तरह से पार्टी में बढ़ रही परिवारवाद के कारण काफी दिनों से बोलते रहे.......लेकिन मुलायम सिंह यादव को अपने परिवार प्रेम कुछ ज्यादा दिखा और अपने अमर प्रेम को तोड़ना ही मुनासिफ लगा। अमर सिंह को लेकर समाजवादी पार्टी ने जो कदम उठाया है उसका फायदा नहीं नुकसान ज्यादा दिख रहा है....... अमर सिंह पार्टी को तोड़ने की भरपूर कोशिश करगें साथ-ही-साथ पार्टी में उनके कुछ भरोसे मंद लोग खुद-ब-खुद उनके साथ आयेगे........ जिसकी शुरुआत आज से ही हो चुकी है। ये तो रही अमर प्रेम की कहानी के क्लाइमेंक्स की वजह लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि अमर सिंह का अगला कदम क्या होगा....... कहा जाता है कि अमर सिंह संभावनाओं के खिलाड़ी है जिसका हर दाव निशाने पर ही लगता है.........या यूं कहे कि अमर सिंह के पास वो चाभी है जो हर ताले को खोलने में माहिर है........