मत पूछो ये मुझसे की कब याद आते हो,
जब-जब साँसे चलती है बहुत याद
आते हो |
नींद में पलकें होती हैं जब भी भरी,
बनके ख्वाब
बार-बार नज़र आते हो|
महफिल में शामिल होते हैं हम जब भी,
भीड़
की तन्हाइयों में हरबार नज़र आते हो|
जब भी सोचा की फासला रखूँ मैं
तुमसे,
ज़िन्दगी बनके साँसों में समां जाते हो|
खुद को तूफ़ान
बनाने की कोशिश तो की,
बनके साहिल अपनी आगोश में समा जाते हो|
चाह
ना था मैंने इस पहेली में उलझना,
हर उलझन का जबाव बनके उभर आते हो|
सूरज
की रौशनी, चंदा की चाँदनी,
आसमान को देखता हूँ मैं जब-जब,
तुम्हारी
कसम बहुत-बहुत याद आते हो|
अब ना पूछो मुझसे की कब-कब याद आते हो........
भावों को खूबसूरती से प्रेषित किया है ..
जवाब देंहटाएंकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
thanxxxx...
जवाब देंहटाएंकिस - किस तरह से तुम याद आते हो ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत !
सूरज
जवाब देंहटाएंकी रौशनी, चंदा की चाँदनी,
आसमान को देखता हूँ मैं जब-जब,
तुम्हारी
कसम बहुत-बहुत याद आते हो|
Ashok ji , I am amazed` at your writing skills .
Best wishes.
.
khud ko tufan banane ki kosish..........
जवाब देंहटाएंbahot acchi pankti
yaad aana uska bhoolne nahi deta
जवाब देंहटाएंyaad aana uska kuchh aur yaad aane nahi deta.
sunder abhivyakti.
thaxxxxx
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