2/17/2010

फिर राम नाम.........


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बीजेपी ने राम और राम मंदिर की चिंता फिर से करनी शुरु कर दी है...... इसी मुद्दे के सहारे वो देश की राजनीति में केन्द्र की सत्ता तक पहुचनें में कामयाब हुये थे। लेकिन पिछले दो लोक सभा चुनाव में वो सत्ता से दूर होते नज़र आये तो पार्टी में सिरफुटवल शुरु हो गयी..... पार्टी में काफी फेरबदल हुए ......प्रधानमंत्री पद के दावेदार लाल कृण्ण आडवाणी को अपने इस दावे से हटना पड़ा.....तो राजनाथ सिंह को पार्टी प्रमुख के पद से छुट्टी लेनी पड़ी.... बीजेपी में यशवत सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया गया...... कभी अटल विहारी बाजपेयी के समय एनडीए में सहयोगी दलों की बाढ़ हुआ करती थी.....लेकिन सत्ता से दूरी और बीजेपी में भटकाव की बज़ह से ये सहयोगी भी इन से किनारा कसते गये....... अब बीजेपी को सहयोगी दलों की तलाश करनी पड़ रही है...... यानि बीजेपी को अब एक मुद्दे की तलाश है..... जिसके बल पर वो अपने पूराने आधार की तलाश में लग चुकी है.......इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में राम के राग को फिर से अलापना शुरु कर दिया है...... ये वक्तवय दिया खुद पार्टी के नये अध्यक्ष नितिन गडकरी ने....... अब बीजेपी एक बार फिर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का संकल्प लेते हुए मुसलमानों से इसका रास्ता साफ करने की अपील की.... नितिन गडकरी का मानना है कि राम मंदिर के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन हो चुका है...... और राम के नाम पर हजारों कारसेवकों ने अपनी जान दे दी है......लेकिन इस बार राम के नाम पर बीजेपी कोई आंदोलन नहीं करना चाहती है.... वो इस मामले में मुसलमानों से सहयोग की अपील कर रहा है..... और हिन्दुओं की भावनाओं को समझते हुए सहयोग की उम्मीद कर रही। बीजेपी अपनी हार, घटते जनाधार और पार्टी की आपसी कलह की बज़ह से राम मुद्दे के बल पर अपनी ताकत को बढ़ाने की कोशिश में लग चुकी है...... लेकिन सवाल ये उठता है कि सत्ता में रहते हुए बीजेपी को ये क्यों नहीं याद आया....... अब सत्ता से बाहर होने पर राम फिर याद आ रहे है.। आखिर बीजेपी राम के सहारे केन्द्र की सत्ता तक पहुची थी या फिर अटल का वो व्यक्तितव जिसका हर कोई कायल था.....या फिर बीजेपी में आससी टकराव की वज़ह से अपनी शाख बचाने को मज़बूर हो गयी है। हर पार्टी किसी ना किसी मुद्दे के सहारे राजनीति चमकाने की कोशिश करती है....... लेकिन बीजेपी पर राम मुद्दे का एक मार्क लग चुका था..... पिछले दिनों वो इस मुद्दे से हटकर सेकुलर बनने की कोशिश में लगी थी....लेकिन बीजेपी के सेहत के लिए यह टॉनिक फायदे की जगह नुकसान देने लगा.....तो बीजेपी ने अपनी सेहत गिरती देख अपनी पूरानी आजमाई टॉनिक को आजमाने की कोशिश शुरु कर दी..... लेकिन बीजेपी को तो ये देख लेना चाहिए की कहीं इस टॉनिक की एक्सपायरी डेट तो नहीं आ चुकी है.....या एक्सपायर ही हो चुकी है....

2/10/2010

.....अब चाचा VS भतीजा

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मुम्बई पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है.....मुद्दा ये है कि आखिर असली देश भक्त कौन है...... इस मुद्दे को लेकर शाहरुख खान को शिवसेना देशद्रोही बताने की कोशिश कर रही है। शिवसेना ने अपने आप को देशभक्त बताकर शाहरुख के बयानों का बहाना बनाकर राजनीति की रोटी गरम करने की कोशिश कर रही है... इसी कड़ी में जो लोग शाहरुख का समर्थन में आये उनकों भी बाल ठाकरे की तरफ से बिरोध का सामना करना पड़ा। इस मुद्दे को लेकर मुम्बई में शाहरुख खान और शिवसेना की जंग मच चुकी है..... कभी माई नेम इज खान के पोस्टर फाड़े जा रहे है.... कभी इस फिल्म के एडवान्स बुकिंग के समय पथराव हो रहे है.....साथ ही साथ बाल ठाकरे की तरफ से शाहरुख को खुलेआम धमकियां दी जा रही है..... इसे देख कर तो यहीं लगता है कि मुम्बई में बाल ठाकरे की दादागिरी अपने उफान पर है.....सिनेमा घर के मालिक तो इस फिल्म को तो दिखाना चाह रहे है लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा का खतरा नज़र आ रहा है...... महाराष्ट्र सरकार इस फिल्म की पूरी सुरक्षा की बात तो कह रही है..... लेकिन सिनेमा हॉल के मालिक किसी भी खतरे को मोल लेना नहीं चाहते..... इसी कड़ी में कुछ सिनेमा हॉल के मालिकों ने अपने यहां इस फिल्म को चलाने से मना कर चुके है। यानि मुम्बई में अशोक चव्हाण का राज नहीं बाल ठाकरे की चल रही है...... लेकिन इस मुद्दे में एक कड़ी और जुड़ चुकी है....... अब ये जंग बाल ठाकरे बनाम शाहरुख ना रह कर बाल ठाकरे बनाम राज ठाकरे में बदल चुकी है...... यानि ये जंग चाचा और भतीजे के बीच जा पहुची है..... राज ठाकरे अब शाहरुख के समर्थन करते नज़र आ रहे है.... राज ने साफ कहा कि शिवसेना दोहरा मापदंड अपना रही है.....वो शाहरुख का तो विरोध कर रही है लेकिन सदी के महानायक अमिताभ का क्यों नहीं..... जो अमन की आस कार्यक्रम में पाक कलाकारों के साथ नज़र आये...... और तो और अमिताभ की फिल्म रण को अपने घर में बैठक उन्ही के साथ देख रहे है। यानि अब इस मामले को राजनितिक फायदे का इस्तेमाल किया जा रहा है..... राज को लग रहा है कि उनका मराठी वोट बैंक कही कम ना हो जाय इस लिये वो अमिताभ को अपना निशाना बनाया साथ ही साथ शिव सेना पर दोहरी राजनित का आरोप भी मढ़ दिया। यानि इस जंग में एक नया मोड़ ये है कि चाचा और भतीजे की राजनित शुरु हो चुकी है.... राज ने शाहरुख की फिल्म का विरोध ना करने का फैसला किया है..... अब ये देश भक्ति का मुद्दा...जो शिवसेना कह रही थी..... राजनिति का मुद्दा बन चुकी है..... और इसको भुनाने की दौर भी शुरु हो चुकी है..... देखना ये होगा कि कौन कितना फायदा उठाता है...... यानि अब यह एक पारिवारिक मुद्दा बन गया है.....चलों ये तो ठीक है कि देश भक्ति की बात करने वाले ये लोग यदि आपस में उलझे रहे तो....... देश का कुछ तो भला जरुर होगा......

Badlaw ki Taraf...: ‘माई नेम इज ठाकरे’

Badlaw ki Taraf...: ‘माई नेम इज ठाकरे’

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‘माई नेम इज ठाकरे’


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शाहरुख खान की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ के विरोध का मन बना लिया है ‘माई नेम इज ठाकरे’ परिवार ने.... या यूं कहे कि खान और ठाकरे में मुम्बई में पूरी तरह से ठन चुकी है। शाहरुख ने पाक क्रिकेटरों पर अपने विचार क्या दे दिये कि ठाकरे-कंपनी उनके पिछे हाथ धो कर पड़ चुकी है....... पहले तो शाहरुख पर पाक की हिमायत करने का आरोप मढ़ा गया..... फिर उनकों मुम्बई में आने पर देख लेने की धमकियां दी गयी..... और तो और शाहरुख को पाक में रहने की सलाह तक दी गयी.... यानि अब ठाकरे परिवार ये खुद कह रहा है कि ‘माई नेम इज ठाकरे’ और मुझ में है दम..... पहले तो इस मामले को लेकर कथित शिव सैनिकों ने इस फिल्म के पोस्टर को फाड़ा गया.....और सारेआम शिव सेना के लोग धमकियां देते नज़र आये.... इस मामले की गंभीरता को लेते हुए राज्य सरकार ने शाहरुख की सुरक्षा मुहैया करना का आश्वासन दिया......आखिर देश में लोगों को अपने ही लोगों से सुरक्षा का खतरा नज़र आने लगा ...और उन लोगों से जो अपने आप को जनता का नुमाइनदा कहते हुए फिरते है..... अगर ये शिव सेना अपना आप को जनता का नुमाइनदा कहते है तो उन माफियाओं और इन में फर्क क्या है.... अब जब शाहरुख की फिल्म माई नेम इज खान के रिलीज में कुछ ही दिन बाकी है और इस फिल्म की एडवान्स बुकिंग शुरु क्या हुई कि शिव सैनिक आग बबुला होकर सिनेमा घरों में तोड़-फोड़ शुरु कर दी...... आखिर जिस तरह से शिव सेना शाहरुख के खिलाफ जो बर्ताव कर रही है क्या ये एक राजनैतिक पार्टी को शोभा देता है...... शिव सेना मुम्बई में कभी उत्तर भारतियों को निशाना बनाती है तो कभी क्रिकेटरो को तो कभी किसी बात को लेकर किसी सेलीब्रेटी को निसाना बनाती रही है..... क्या ठाकरे परिवार को देश के मुद्दे पर मनमानी करने का ठेका ले रखा है..... क्या हमारी कानून व्यवस्था इतनी लच़र हो चुकी है कि इन पर नकेल नहीं लगाया जा सकता...... या हमारी सरकारें इन पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकती या करना ही नहीं चाहती। बाल ठाकरे ने तो शाहरुख की तुलना पाक आंतकी कसाब से कर डाली और शाहरुख की सुरक्षा दिये जाने पर पर खुद की और अपनी पार्टी के सांसद और विधायको की सरकारी सुरक्षा लेने से मना कर दिया.... आखिर इन लोगों को सुरक्षा की जरुरत ही क्या है जो दूसरों के लिए खुद खतरा बने हुए...... क्या मुम्बई ठाकरे परिवार की प्रापर्टी बन चुकी है जो ये लोग किसी भी तरह से इसे भुनाने की कोशिश करते रहेगे.....

2/03/2010

..........आखिर डर गया बॉलीवुड

मुम्बई की फिल्म नगरी जिसे बॉलीवुड कहते है....... भारत की फिल्म निर्माण और कमाई के मामलें में सबकों पछाड़ चुका है... यहां बनने वाली फिल्मों से रातों- रात करोड़ों के वारे निवारे होते है। बॉलीवुड पर ये हमेशा आरोप लगते रहे है कि यहां पर बनने वाली फिल्मों में अन्डरवर्ल्ड का पैसा लग रहा है......और हमेशा से बॉलीवुड पर अन्डरवर्ल्ड का खौफ छाया रहता है..... और बॉलीवुड से धन की उगाही की खबर सामने आती रहती है। लेकिन आजकल बॉलीवुड डरा और सहमा हुआ है...... और ये खौफ है ठाकरे परिवार का....... शाहरुख खान को ये परिवार लगातार धमकियां दे रहा है..... आखिर शाहरुख खान का कसूर बस इतना है कि वो पाक के क्रिकेट खिलाड़ियों की हिमायत कर डाली। इस बात में शाहरुख खान ने कौन सी गलती कर दी जिससे देश की अस्मिता पर खतरा आ गया। लेकिन शिवसेना जैसे देश भक्तों के लिए एक मुद्दा मिल गया और इस मामले को लेकर शाहरुख के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। मुम्बई में खान को चुनौती मिल रही कि वापस आने पर देख लिया जायेगा..... मुम्बई में शाहरुख की फिल्म ‘ माई नेम इज खान’ के प्रर्दशन पर रोक लगाना का फरमान जारी कर चुकी है। इस मामले को लेकर बॉलीवुड खुले तौर पर ठाकरे परिवार का विरोध नहीं कर रहा है..... कहीं ना कहीं शाहरुख खान अपने आप को ठाकरे के साथ इस लड़ाई में अकेला खड़ा नज़र पा रहे है....... ये कोई नया मामला नही है कि बॉलीवुड को ठाकरे परिवार पहली बार धमकायां हो.... ऐसे मामले कई बार हो चुके है..... लेकिन हर बार बॉलीवुड हार कर मांफी मागना ही उचित समझा.... आखिर क्यों ठाकरे परिवार की मनमानी के आगे लोग झुकते जा रहे .... क्यों ना लोग अपनी आवाज उठा रहे है ..... जिस दिन शाहरुख की फिल्म के पोस्टर मुम्बई से हटाये जा रहे थे उसी दिन सदी के महानायक अपनी फिल्म रण को बाल ठाकरे को दिखाने पहुच गये। कुछ गिने चुने चेहरे जो शाहरुख के साथ खड़े तो हुए लेकिन वो भी खुले तौर पर ऐसा नहीं कर पाये...... यानि यूं कहे तो डर रहा है बॉलीवुड ठाकरे की खौफ से....... लोग यही सोच रहे होगे कि भाई पानी में रह कर मगर से बैर ठीक नहीं है........

मुम्बई में.....डी कंपनी.......से टी कंपनी

मुम्बई के पीछले कुछ साल पहले के इतिहास पर नज़र डाले....... जब लोग इस शहर को बॉम्बे के नाम से पहचानते थे..... तब इस बॉम्बे में भाई लोगों का बोलबाला हुआ करता था... भाई बोले तो बॉम्बे में फैला गुन्डों का राज जिसके दहशत से शहर के लोग की रुह तक कांप जाती थी। इन भाईयों का दहशत इस कदर हुआ करता कि सरकार से लेकर पुलिस प्रशासन तक के लोग सहम जाते थे। इन्हीं भाइयों के गिरोह में दहशत का सबसे बड़ा नाम था डी कंपनी का जिसका सरगना था दाउद इब्राहीम....... जिसके दहशत की खबर आज भी आती रहती है..... बस फर्क सिर्फ इतना है कि वो इस शहर से ही नहीं देश से बाहर है..... जिसके तलाश में आज भी भारत की सरकार जीतोड़ में लगी है। लेकिन आज तक इस डी कंपनी का दहशत पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है..... लेकिन इस कंपनी का खौप लोगों में थोड़ा कम तो जरुर हो गया है। अब मुम्बई में एक और कंपनी का दहशत फैल गया है...... इस कंपनी का दहशत सिर्फ मुम्बई में ही नहीं पूरे देश में फैला हुआ है........ जी हां हम बात कर रहे है टी कंपनी...... बोले तो ठाकरे कंपनी। आजकल मुम्बई ठाकरे परिवार के दादागिरी से पूरी तरह से परेशान हो चुका है..... डी कंपनी तो छिप कर लोगों में दहशत फैलाती थी..... लेकिन ये टी कंपनी तो सरेयाम अपनी गुन्डागर्दी पर का खौप लोगों में फैला रही है....... इस कंपनी पर नकेल डालने में राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक ने अपने हाथ खड़े कर दिये है और-तो और पुलिस प्रशासन इन गुन्डा गर्दो को सुरक्षा मुहैया करा रही है। यदि ठाकरे परिवार का ये रवैया ठीक है तो कश्मीरी अलगाववादीयों और अफगान तालिबानी में फर्क क्या है....... टी कंपनी की ये दादागिरी कोई नयी बात नहीं वो काफी समय से उत्तर भारतीयों पर हमले शुरु कर दिये थे...... लोगों पर अपने तालिबानी फ़रमान थोपने की कोशिश कर रहा है...... मराठी मानुष के नाम पर ये लोगों महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में लगे है। आखिर जब हमारे देश का संविधान में किसी राज्य, भाषा, जाति, संप्रदाय और मज़हब के भेदभाव को नहीं मानता तो आखिर ये टी कंपनी लोगों में किस आधार पर ये करने की कोशिश कर रही है...... क्या ये टी कंपनी कानून, संविधान और व्यवस्था से बड़ा है....... यदि इसका जबाब हां है तो कुछ गलत नहीं हो रहा मुम्बई में...... लेकिन इसका जबाब नहीं है तो आखिर ये सब कैसे हो रहा है। इस टी कंपनी ने आजकल मुम्बई में जिस तरह से देश हित को लेकर दहशत का माहैल पैदा किया है ..... और लोगों में ये जताने की कोशिश कर रहा है कि उनसे बढ़कर देश प्रेमी कोई नहीं है.......तो ये सरासर गलत है..... जिस तरह से विदेशी क्रिकेटरों के मामले को भुनाने की कोशिश की जा रही है...... जिससे लगता है कि देश की इज्जत और सुरक्षा का जिम्मा इन्हीं के पास है..... लेकिन ऐसा कर के ये टी कंपनी देश की साख को भी बाट लगा रहे है..... लोगों में ये संदेश दे रहे है कि भारत में लोगों को कहीं रहने और बोलने की आजादी नहीं है...... यदि लोगों को कुछ भी बोलना है तो टी कंपनी से कॉपीराइट लेना पड़ेगा। यदि टी कंपनी के इस दादागिरी को रोका नहीं गया तो ये देश की अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा.....

2/02/2010

आखिर ..... आमची मुम्बई......किसकी

आमची मुम्बई का मुद्दा कोई नई बात नहीं है..... लेकिन ये मुद्दा पूराना भी नहीं है। मुम्बई या महाराष्ट्र मराठियों की है ये मुद्दा शिवसेना के विभाजन के बाद से ही काफी गरम हो गया.... राज ठाकरे ने जिस तरह अपने परिवार से अलग होकर अपनी नयी पार्टी एमएनएस की नींव रखी.....तो इस पार्टी को एक मुद्दे की तलाश थी और इनके हाथों ये मुद्दा मिला कि मराठियों की बात कर के महाराष्ट्र की राजनीति में अपना कुछ जनाधार बनाया जा सकता है। राज ठाकरे इसी मुद्दे के बल पर पिछले विधान सभा में कुछ सीटों पर अपनी जीत का परचम भी लहराया था....... लेकिन इस जीत से ना तो वो खुद या शिवसेना को महाराष्ट्र की गद्दी तक पहुंचने दिया...... शायद अब वो इस मुद्दे के बल पर अपनी राजनीति की रोटी गरम करने की कोशिश करने में लगे है। इस मुद्दे को लेकर एमएनएस और शिवसेना पूरी कोशिश कर रहे है। बाल ठाकरे कभी आईपीएल में ऑस्ट्रेलियां क्रिकेटरों को धमका रहे है तो कभी पाक खिलाड़ियों को खुली चुनौती दी जा रही है। मराठी मुद्दे को लेकर शिवसेना और उसके सहयोगी बीजेपी में भी ठन चुकी है...... दोनों पार्टियों के नेता उत्तर भारतीयों के मुद्दे पर जमकर बवाल मचा चुके है। उत्तर भारतीयों की मुम्बई में रक्षा के लिए आरएसएस ने संकल्प उठाया तो वाल ठाकरे ने जमकर बरसना शुरु कर दिया........ और इस मुद्दे पर बीजेपी और शिवसेना में तलवारें खींचती नज़र आयी........आखिर बीजेपी ने अपना जनाधार महाराष्ट्र में कम होता देख उत्तर भारत में अपनी पकड़ को कम ना होने के लिए इस मुद्दे पर अब बोलना शुरु किया है......और इस में वो अपने सहयोगी आरएसएस के सहारे इस मामले को उठाने की कोशिश में लगे है......लेकिन बाजेपी को ये मुद्दा अब क्यों दिख रहा... जो कभी शिवसेना के एक विश्वसनीय सहयोगी रहे है। यानि बीजेपी ने इस मुद्दे को उछाल कर उत्तर भारतीयों की सहानभुति लेने का मन बना लिया है...... ये बात तो रही राजनितिक फायदे की लेकिन शाहरुख कान ने पाक क्रिकेटरों को भारत में खेल की इच्छा क्या जताई शिवसेना उनके पीछे पड़ चुकी है...... शाहरुख को शिवसेना की तरफ से लगातार धमकियां दी जा रही है......... और-तो-और शाहरुख की हाल में ही रीलिज़ होने वाली फिल्म ‘माई नेम इज खान’ के पोस्टर शिवसेना ने मुम्बई से हटवा दिये........ और शाहरुख से अपने दियो बयान पर मांफी मांगने को कहा जा रहा है.......आखिर ठाकरे परिवार और तालिबानीयों में फर्क ही क्या है। बॉलीवुड भी शाहरुख के मामले में उनकी तरफ खड़ नहीं दिख रहा है........आखिर यह शिवसेना की दहशत है या बॉलीवुड का अपना निजी मामला....... लेकिन मामला जो भी हो शिवसेना की इन धमकियों जायज नहीं ठहराया जा सकता है। शिवसेना खुलेयाम मुम्बई में उत्तर भारतीयों को अपना निशाना बनाती रही है....... लेकिन ना तो केन्द्र सरकार ना तो महाराष्ट्र की सरकार ने इन पर नकेल लगाने की कोशिश नहीं की और तो और अशोक चव्हाण सरकार ने तो पीछले दिनों आग में घी लालने का काम कर रहो है......वो लोगों को मराठी सीखने की वकालत करते नज़र आये.... लेकिन वो इस मामले पर दबाव के कारण यू-टर्न तो ले लिया ...... लेकिन इस मामले को राज ठाकरे ने आगे बढाते हुए मुम्बई में फ़रमान जारी कर दिया की चालीस दिनों में मराठी सीखने का हुक़म दे डाला। अब बाल ठाकरे और राहुल गांधी में भी इस मामले पर बयानबाजी शुरु हो चुकी है....... राहुल को तो अब इटली वाली मॉ का बच्चा करारा दिया जा रहा है। शिवसेना और राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपना तालिबानी कानून थोपने की कोशिश कर रहा है......... लेकिन इस मुद्दे पर ना तो सरकार ना तो आम लोग भी खुले तौर पर इसके विरोध के लिए सामने नहीं आ रहे है। हमारी सरकार ऑस्ट्रेलियां में भारतीयों पर हो रहे हमले के लिए काफी रोष वयक्त कर चुकी है...... सरकार ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमले को रोकने की पूरी कोशिश कर रही है......... लेकिन देश में ही एक प्रदेश में काफी दिनों से यही हो रहा है और केन्द्र सरकार कोई कदम नहीं उठाना नहीं चाहती है....... जब देश का आम नागरिक अपने देश में ही सुरक्षित नहीं है ना ही देश में खुलकर बोलने के लिए आज़ाद है...... तो ऐसे में दूसरे देशों में अपने लोगों की सुरक्षा की मांग करना बेइमानी है......

2/01/2010

..........अमर प्रेम का..........अमर अंत

आखिर अब जाकर अमर सिंह और मुलायम सिंह की प्रेम कहानी का क्लाइमेंक्स हो गया जिसका इंतजार भारतीय राजनीति में बड़ी मुद्दत से किया जा रहा था। लेकिन इस के साथ-साथ जयाप्रदा को भी समाजवादी पार्टी से रास्ता दिखा दिया गया और चार विधायकों की भी छुट्टी कर दी गयी। अमर सिंह को सपा से निकालते वक्त ये आरोप लगाये गये कि वो पीछले एक महीने से पार्टी विरोधी गतिविधियां चला रहे है। अमर सिंह का पीछले चौदह सालों से मुलायम के साथ रहे है.....यानि रामायण में तो हमने सुना है कि राम तो चौदह साल बाद बनवास के बाद वापस आकर अपने भाई भरत से मिलते है........ अमर सिंह भी तो मुलायम को अपना भाई मानते थे.......... लेकिन इस कहानी में अमर सिंह को मुलायम सिंह यादव ने अपने साथ चौदह साल रखने के बाद बनवास का रास्ता दिखा दिया। अमर सिंह ये बार-बार कहते रहे थे कि मुलायम सिंह यादव उनके बड़े भाई की तरह है और सपा से उनका सम्बन्ध जीवन भर रहेगा........ लेकिन इस अमर प्रेम का अन्त चौदह सालों में ही हो गया। अमर सिंह के पीछले बयानों पर गौर करे तो वो बार-बार कहते रहे है कि समाजवादी पार्टी से जूते मारकर निकाला जायेगा तो ही वो बाहर जायेगा...... इस बयान के बाद सपा को कुछ नेता तो यहां तक कह दिये कि अमर सिंह बहुत इस वेशर्म इंसान है...... लेकिन अब अमर सिंह को लग चुका है कि पार्टी ने उन्हें जूते मार ही दिये है। अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के इस अलगाव की मुख्य वजह पार्टी में मुलायम परिवार की बढ़ती पैठ को माना जा रहा है......लोक सभा के मध्यावधि चुनाव फिरोजाबाद में हार से इस कहानी की नींव रखी जा चुकी थी......बार-बार अमर सिंह पार्टी में मुलायम सिमह यादव के परिवार की बढ़ रही दखलअंदाजी पर बोलते रहे.....वो इस तरह से पार्टी में बढ़ रही परिवारवाद के कारण काफी दिनों से बोलते रहे.......लेकिन मुलायम सिंह यादव को अपने परिवार प्रेम कुछ ज्यादा दिखा और अपने अमर प्रेम को तोड़ना ही मुनासिफ लगा। अमर सिंह को लेकर समाजवादी पार्टी ने जो कदम उठाया है उसका फायदा नहीं नुकसान ज्यादा दिख रहा है....... अमर सिंह पार्टी को तोड़ने की भरपूर कोशिश करगें साथ-ही-साथ पार्टी में उनके कुछ भरोसे मंद लोग खुद-ब-खुद उनके साथ आयेगे........ जिसकी शुरुआत आज से ही हो चुकी है। ये तो रही अमर प्रेम की कहानी के क्लाइमेंक्स की वजह लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि अमर सिंह का अगला कदम क्या होगा....... कहा जाता है कि अमर सिंह संभावनाओं के खिलाड़ी है जिसका हर दाव निशाने पर ही लगता है.........या यूं कहे कि अमर सिंह के पास वो चाभी है जो हर ताले को खोलने में माहिर है........