लोग किनारे की रेत पे
अपने दर्द छोड़ देते हैं
वो समेटता रहता है
अपनी लहरेँ फैला फैला कर
हमने कई बार देखा है
समंदर को नम होते हुए।
जब भी कोई उदास होकर
आ जाता है उसके करीब
वो अपनी लहरेँ खोल देता है
और खींच कर भीँच लेता है
अपने विशाल आगोश में
ताकि जज्ब कर सके आदमी
कभी जब मैं रोना चाहता था
पर आँसू पास नहीं होते थे
तो उसने आँखों को आँसू दिए थे
और घंटों तक अपने किनारे का
कंधा दिया था
मैं चाहता था कि
खींच लाऊं समंदर को
अपने शहर तक
पर मैं जानता हूँ
महानगर में दर्द होते हैं...
देखा है समंदर नम होते हुए.....
गज़ब के भाव भरे हैं।
जवाब देंहटाएंकल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
thanx ji
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